जैन अचार सिद्धांत और स्वरुप | Jain Aachar Sidhant Aur Swarup

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Jain Aachar Sidhant Aur Swarup by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शा लक => ना + ५२१) यूनानी-आचार मुनान के दाशमिवों मं प्रसिद्ध विघारक सुकरात था । उसका शिप्य प्लेटो था बौर प्मेटो का शिप्य लरसतु या । तीनो ने ही नीति और आचार पर विशप बल दिया चां सुकरात के विचार में नीति अयदा घम का स्थान सर्वोच्च था । भद कया दै घौर अभद षया है? इसकी नोव सुगरात ने बुद्धि पर रखी । मुकरात ने बहा दि जो भद्र है वह सभी के लिए भद् है बौर जो अभर है वह सभी के निए अभद्र है । सुकरात ने सबसे बड़ी बात यह ब्दी थौ वि सदाचार ही शान है। सप्रकार सटाचार को थान कंटकर सुकरात ने धम का गौरव बढ़ाया था । सुररान का कहना थाक जिस व्यक्ति वो सहाचार का लाने से हो वह सटादार का पालन नहीं कर सकता । “याय बी बर सकता है जिस याय का शान हो । सुकरात न यह भी कहा था कि नियम मनुष्य वे लिए बनते हैं मनुष्य नियम के लिए नदी । सुकरात ने सत्य न्याय मौर सममके लिए खूब कहां था. और प्रचार भी सूव किया था । प्लेटो ते नीति मे साथ राजनीति को भी जोड़ दिया और कहां कि समाज का समृद्ध भौर शक्तिशाली बनाने # निए जिस प्रकार नतिकता की आवश्यकता है उसी प्रकार राजनीति की भी वश्यता है) लेटा क विचारों क अनुसार नीति और राजनीति दोनों का प्रयोजन मानव-बस्याण है! नीति बताती है कि व्यक्ति भद्र की उत्पत्ति में अपने प्रयत्न स क्या षर सकता दै? राजनीति बतातौ है रि मनुष्यो का सामूहिक प्रयत्न षया कर सक्ता दै? -याय कौ परिभाषा क्रत हुए प्लटो ने कटा यायाय दूसरों के शाप उचित भौर निष्कपट व्यवहार वा नाम है। जो कुठ मपना है उपे प्राप्तं केरा यदी -याय है! सामाजिक जीवन का सारप्तटो के विचार में व्यवस्था या स्थापन है। समाज नियम स्थापित करता है और माँ करता है कि नागरिव' उन नियमो पर चलें । प्लेटा कहा बरता था कि अच्छा व्यत्ति अच्छे राष्ट्र वा अच्छा नागरिक है । इस प्रकार प्लेटा ने सदाचार नीति और आचार के सम्बघ मे बहुत कुछ निखा था । प्लटो के समान अरस्तु वा भी यदों विचार था कि समाज और राष्ट्र को समुद्ध सौर शक्तिशाली बनाने के लिए नीति और राजनीति दोनो मी आवश्यकता है.। अरस्तू का कहना है दि शक्ति और सदाचार में मित्रता नहीं हो सरती । व्यवद्दार की हप्टि से झरस्तु बिसी एक के स्थान म कुछ भले पुर्पो के हाथों में शक्ति देने के पक्ष मे था । उसका यह भी विश्वास था दि राष्ट्र म कसी बग का बहुत घनवान होना अथवा बहुत दरिद्र होता राय के लिए हानिकारक होता है। मध्यम बग राष्ट्र म रीढ़ की हडदी के समान होठा है। बरस्तू कहता था-- प्रभ रूपी और पुरुष को दो थे एक बनाता है प्रम परिदार को जम देता है सतान इष स्थायी यनानी दै 1 अरस्तू ने अपने नोतिशास्त्र मे कहां है कि घन का व्यय करने मे बजूस एक सीमा पर जाता हैं और अपव्ययी दूसरी सीमा पर जा पहुँचता है । उरार पुरुष मध्यम भाग चुनता है । दूसरों को धत बी सहायता दना सुगम है. परन्तु उचित मनुष्य को उचित समय पर, उचित मात्रा मे और उचित ढग स सहायता देना




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