उत्तराधे प्रथमः परिभाषाखंड | Utharardamu Pradhama Paribhasa Kandah

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Utharardamu Pradhama Paribhasa Kandah by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ॐ उत्तराः । परिभाषाखण्डः प्रथमः । मानपरिभाषाविज्ञानीयाध्यायः १। अथातो सानपरिभाषाविज्ञानीयमध्यायं व्याख्यास्यामः, यथोचु- रात्रेयघन्वन्तरिप्रभृतयः ॥ १॥ प्रिमाषारष्षणम्‌-- अव्यक्तानुकङेशोक्तसंदिग्धार्थप्रकारिकाः। परिभाषाः प्रकथ्यन्ते दीपीभूताः सुनिधिताः॥ २॥ सान्नं स्पष्ट रूपसे न कदे हुए, सर्वथा न कहे हुए, संक्षेपसे कहे हुए अथवा संदिग्ध विषर्योपर्‌ प्रकाश डलनेवाली शाघ्न तथा अनुभवसे निश्चित परिभाषाएँ कही जाती हैं ॥ २ ॥ मानशानप्रयोजनमू--- न मानिन बिना युक्तिद्रव्याणां जायते छचित्‌ । अतः प्रयोगकार्योथ मानमत्रोच्यते मया ॥ ३ ॥ (शा. प्र, ख, अ, १)। किसी भी योग मानके विना ओषधद्रव्योकी योजना नही की जा सकती है, इस- छिये योग बनाते समय व्यवहारमें लानेके स्यि प्रथम मान ( तोर ) कहा जाता है ॥३॥ सुशरतमतेन मनपरिमष-- पठकुडवादीनामतो मानं तु व्याख्यास्यामः तत्र द्वादश धान्यमाषा मध्यमाः सुबणेमाषकः, ते षोडज्च सवणेम्‌; अथवा मध्यमनिष्पावा १ (मीयते अनेन, इति मानम्‌-जिसके द्वारा तोला या मापा जाय उसको भान कहते दै, इस व्युत्पत्तिसे भानः शब्दसे तौर करनेके साधन राई, सरसों, चावल, जो, रत्ती आदिका त्था नापनेके साधन यव, अङ्कुल, वितसि आदि( नाप मानदण्ड )का महण होता दे । इस अध्याये मान( तौर )की परिभापाका वर्णन किया गया है । इसछिये इसका नाम सानपरिभाषाधिज्ञानी याध्याय रखा गया है |




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