नीतिवाक्यामृत में राजनीति | Nitivakyamrit Men Rajaneeti

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Book Image : नीतिवाक्यामृत में राजनीति  - Nitivakyamrit Men Rajaneeti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रचना को थी । इन प्रत्थों में अर्थशास्त्र के उद्धरण भी मिलते हैं । मर्यशास्त्र का रचना काल ई० पू० ३०० निर्णीत हुआ है । डॉ० जाली, विन्टरवित्सू तथा कीय अर्थशास्त्र को मौर्य सन्नाटू चन्द्रगुप्त के प्रधानमस्त्री कौठिल्य की कृति नहीं मावते । डॉ० जायसवाल ने डॉ० जॉली तथा उन सभी विद्वानों के वर्कों का अत्यन्त पाण्डित्यपूर्ण उत्तर दिया है और यह सिद्ध किया है कि इस ग्रन्थ की रचना ३०० ई० पू० में हुई थी और कौटिल्य भथवां विष्णुगुप्त मौर्य सम्नाद चन्द्रगुप्त के मन्त्री घे † ढॉँ० इयामशास्त्री, गणपतिशास्त्री, डी० आर० भण्डारकर आदि विद्वानों ने सप्रमाण सिद्ध किया है कि भर्थशास्त्र मो्यकालीन रचना है । श्री पी० वी० काणे ने भी अर्थशास्त्र का रचना काल ई० पू० ३०० ही माना है ॥ उन्होंने यह मी लिखा है कि अभी तक कोई ऐसा प्रमाण उपस्थित नही हुआ है जिस के आधार पर भर्थशास्त्र की तिथि इस के पदचातू निर्धारित की जाय । मत्त किसी नवीन तर्क अथवा पर्याप्त प्रमाण की अनुपस्थिति में उक्त बिद्वा्ों के मतानुसार भर्थ- छास्त्र का रचना काल ३०० ई० पू० मानता सर्वधा उचित हैं । नीतिसार कौरित्य के पश्चात्‌ कामन्दक ते सपने ग्रन्थ नीतिखार को रचना की । कामन्दक का चीतिसार शुद्ध राजनीति प्रधान ग्रन्थ है । यद्यपि इस ग्रन्थ की रचना कौटिरीय अर्थशास्त्र के आधार पर ही की गयी हैं, किन्तु फिर भी राजनीति के क्षेत्र में इस का सपूर्वं महत्त्व है ! अर्थवास्त्र के माघार पर इस की रचना होने के कारण हो कुछ विद्वान इसे अर्थशास्त्र का सक्षिप्त रूप भी कहते हैं । इस प्रन्य का रचना काल छठी शवान्दौ माना जाता है । अर्थवातस्मर को समझने में नीतिसार से बहुत सहायता मिछती हैं । इस अ्रन्थ में बहुत से पारिमापिक शब्दीं, जिन का प्रयोग कौटिलोय अर्थशास्त्र में हुमा है, की सरल एवं सारगर्भित व्याख्या की गयी है । कोटित्य का मर्थघास्त्र प्राय गद्य में है बौर उस की रचना में सूत्र धति का प्रयोग किया गया हैं, किन्तु नोतिसार पोकवद्ध ह ! कामन्दक ने अयने गुर विष्णुगुप्त का ऋण स्वीकार किया हे मोर कई दलोकों मे न की प्रणासा को है । वे लिखते हैं कि जिस ने दान न लेने वाले उत्तम कुछ में जन्म लिया और जो कषियों की तरह इस भूमण्डल में प्रसिद्ध हुआ, जो अग्नि के समान तेजस्वी था मौर जिस ने एक वेद के समान चारों वेदों का अध्ययन किया १ विष्णुपुराण ९, २४, २६-२८ 1 २ ङो जली -रनदरोडर्शन ए अर्थ शरास्त्, कीय--हिस्ट्री जॉफ़ सस्वृतत तिट्रेचर, इप ४४५1 ‡ डो ॐ० पो जायखनाच--हिन्द पोचिटौ, परिदिष्ट खी 1 ४ पी० बी० कागे-हिस्ट्री ऑॉफ़ घर्मशास्त्र, वारयुम १, प्र० १०४1 & डॉ० श्मामशास्त्रो-जर्थशात्त्र की भ्रुमिका ! ति । यच्च सदयोधरमहाणजसमकावैन-तदपि कामन्दकोणमिव कौटिल्ीयार्थकास्त्ादेन प्रहित्य सगृ समिति । नीविवाक्यासत में राजनीति




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