विभक्ति - संवाद | Vibhakti - Sanvad

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Vibhakti - Sanvad by आत्माराम जी महाराज - Aatnaram Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नमोत्थुण समणस्स भगवभो मद्दावीरस्स पूवेरद्ग सानन का महीना है। आकाश में चारों ओर घनघोर घटाएँ उमड़ रही हैं मेघ की गम्भीर गजना से द्सों दिश्ाएँ मुखरित हो रही हैं । शीतल, मन्द पवन के झोंके आ रहे हैं । प्रीष्म ऋतु में सूय के प्रचण्ड ताप से उत्तप्र भूमि अविच्छिन्न जलधारा के द्वारा शान्त हो चुकी है। प्रकृति-नटी वषौ ऋतु का नवीन परिधान प्न कर विश्च के रङ्गमञ्च पर एक नयां खेट खेलने में प्रवृत्त हे ! चम्पा नगरी का पृणमद्र-उद्यान आज अभिनव सौन्दयं से सुन्नोभित है । प्रत्येक वृक्ष अपूव शोभा को धारण किए हुए है । वैयराज मेघ ने जढधारा से सिंचन कर मानों वृक्षों का काया-




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