संध्योपासना | Sandhyopasana

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Book Image : संध्योपासना  - Sandhyopasana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ सेष्योपामना । चित्रोका महत्व उपदेशके कामके लिये बहुत है; क्यों कि पढे लिखे आवृमीही घंथ पढ़ सकते हें, परंतु चिन्रोंको तो अनपढ़ मनुष्यभी समझ सकते हें । पू् दिज्ञाकी दीवार पर ऐसे चित्र रखने चाहिए कि जिनमें सू्यका उद्य, छट उत्साही बालकोकी कीडा, प्रफुित वृक्ष आदिक चित्र हां, अथात्‌ जो उत्साह, जाग्रति ओर उदयकी सूचना कर सकते हें । यह इस लिये कि पूवेद्िशा जायुतिकी दिशा समझी जाती है । दक्षिण दिशा की दीवार पर झूरवीर क्षत्रिय आदिके चित्र हों, जो अपने दाक्षिप्यमय व्यवहारसे मृत्युकी पर्वाह् न करते हुए जनताकी उन्नतिके छिये अपने आपको संमपण कर रहे हें, सत्युका चित्र इसी ओर रखना चाहिए, जिसमें प्राणिमात्रके मृत्युका स्पष्ठ निदरोन किया गया हो , अपने पीछे मृत्यु लगा है शस चातका स्मरण होवे, तथः परोपकारके कमे करते इए मरना चाहिए, यदह भाव मनमि स्थापन हो सके; ऐसे चित्र यहां लगाना उचित है । पश्चिम दिश्ञाकी ओर ऐसे चित्र लगाने चाहिए कि, जिनमें शांत ख- सद्र, पानीके रम्य नहर, नदी, तालाव आदिके ङ्य दह, धनधान्य, फलफूलकी सम्द्धि आदि दिखाई हो । उत्तर दिशाकी दीवार पर णेसे चित्र लगाने चाहिए कि जिनमे भरयत्नसे उन्नति पराप्त करनेका माव स्पष्ट होता हैं, अधिक उच्च अवस्था प्राति करनेके छिय सत्पुरुष जो जो प्रयत्न करते हैं, उनकी सुचना इन चित्रोंसि मिल सके ।' साधुसत्पुरुष, जो आत्मिक उस्रनतिम निमझ रहते हैं, उनके चित्र यहां रखे जवे । पाठक यहां ्यानदेगे किं दक्षिण दिरामें क्ष तेज ओर भृत्यु दरांया गया हे ओर उत्तर विशामें जाह्मतेज ओर आत्मिक आनेव्‌ वशाया है \ पूवं विशाम जाग्रति ओर पुरषाथे करनेका उत्साह बताया है, तथा पश्चिम किशामें निवृत्ति ओर आरामका प्रवृशेन किया है । अलेकारकी दृष्टिसे ये दिशायें इन बातोंकी सूचनाएं देती हैं, इस बातका ज्ञान विचारसे पाठक जान सकते हें । यदि छतपर चित्र लगाने हों तो ऐसे चित्र होने चाहिए.




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