रसिकप्रिया का प्रियाप्रसाद तिलक | Rasikpriya Ki Priya Prasad Tilak
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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No Information available about विश्वनाथप्रसाद मिश्र - Vishwanath Prasad Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १६ )
तिनं कबि केसव्दास रों कीन्हो धर्मसनेहु ।
सब सुख दैकरि यों कल्यो रसिकत्रिया करि देहु ॥
संबत सोरह से बरस बौते भ्रठतालीस ।
फातिष सुदि तिचि सष्ठसी बार वरति रजनोस ॥
कितु यह् न समना चाहिए कि केशव ने केवल इंद्रजीत का ही ध्यान
रखकर इसकी रचना की है । हे प्रेरक मात्र थे । रसिकों के लिए ही रसिक-
प्रिया बनी है । वह रसिकप्रिया है, इंद्रजीतप्रिया नहीं--
अति रति समति गति एक करि बिधिध विवेक बिलास)
रसिकन कों रसिकप्रिया कीन्ही केसवदास॥
काव्य भी नरकन्यन होना चाहिए-
तातं रुचि सों सोचि पचि कीजै सरस कवित्त |
केतव स्थाम युजान को सुनत होह बस चित्त ॥
'कवित्त' का भ्रत्वय युजान को'सेहै श्र्थातु स्याम सुजान का कान्य ।
सुजान शब्द श्रीकृष्ण श्रौर राधा दोनों के लिए प्रयुक्त होता था । इसलिए
यदि कोई चाहे तो स्याम सुजान का अ्रथं राधाकृष्ण भी कर सकता है ।
इसमें प्रधान रूप से शंगार का श्ौर गौण रूप से भ्रन्य रसों का विचार
किया गया है । ररा में प्रच्छन्त श्रौर प्रकाश भेद रुद्रभट् के श्यृंगारतिलक के
श्रनुगसन पर रखे गए हैं--
सुभ संजोग बियोग पुनि हूं सिंगार की जाति ।
पुनि प्रच्छन्न प्रकास करि दोऊ हैं ट भाँति ॥।
प्रच्छन्न-परकाण का तात्पये इन्होंने यों समभ्राया है--
सो प्रच्छुन्न संजोग श्ररू कहूँ बियोग प्रमान ।
जानं पौव प्रिया किं सचि होहि जो तिन्हुहि समान ।।
सो प्रकास संजोग श्र करहु प्रकास बियोम ।
श्रपने श्रपने वित्त मे जानं सिंगरे लोग ॥।
न्संयिकाभेद में नायिका की जाति का वर्णन कामशास्त्र के म्रनुसार पश्चिती-
चिचिशी-शंखिनी-हस्तिनी किया गया है । मुग्धामध्यादि के विशेषणु श्यूंगारतिलक
के भ्राधार पर हैं । हिंदी में आगे नाधिकाभेद की जो परंपरा चली वह रस-
मंजरी के अनुसार । केशव ने उसका भ्रनृगमन नहीं किया, कितु हावो का
ग्रहण रसमंजरीकार के श्रनुकूल ही किया है। हास के चार भेद किए हैं--
मंदहास, कलह्टास, श्रतिहास श्रौर परिहास ! श्रस्यत्र परिहास को हास्यरस के
भीतर नहीं रखा गया है, शंगारतिलक में भी नहीं । इसका हेतु यह है कि
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