गीता-निबन्धावली | Geeta-Nibandhavali
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१५)
षे अयन ! मुझ अधिष्ठाताके सकादासे यह मेरी मायाः
चराचरसदित सर्वै जगत््को रचती है । इस हेतुसे ही यह संसार
आवागमनरूप चक्रमे घूमता है । सातो महिं ओर उनसे भी
पू द्यनेवाज चारो सनकादि तथा खायंुब आदि चौदह भनु
मेरेमें भावबाले मेरे संकल्पसे उत्पन इए है, जिनकी संसारम यह
सम्पूर्ण प्रजा है | है अर्जुन ! शरीररूप यन्त्र आरूढ़ हुए सम्पूर्ण
प्राणियोंको अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी मायासे उनके कर्मेकि
अनुसार रमाता हभ सव्र भूत प्राणियोंके हृदयमें स्थित है |”
इसी तरह अ० ४ 1 १३ में “चातुर्व्ण्यके करती” अ० ५1२९, में
'सर्वछोकमहेश्वर” अ० ७। ६ में *सम्पूण जगत्के उत्पत्ति प्रल्य-
रूप” ; अ० ११।३२ मं 'लोक-संहारम प्रवृत्त मदाकार' इत्यादि
रूपोंसे वर्णन है ।
जीवात्माका भोक्ता, कर्ता, ज्ञाता, अदा, अविनाशी, नित्य
आदि लक्ष्णोसे निरूपण किया गया है । जैसे-अध्याय
२।१८ मे नित्य अविनास्ी अप्रमेय; अध्याय १३।२१मे
म्रकृतिमें स्थित गुणक मोक्ता ओर गुर्णोके सेगसे अच्छी बुरी .
योनियोंमें जन्म ऊेनेवाद्य अ० १५।७ मे सनातन अंश,
अ० १५ । १६ “अक्षर कूटस्थ! आदि रक्षणो वर्णन है ।
इस प्रकार मीत अमेद-मेद दोर्नौ प्रकारके वर्णन पाये
जाते हैं । एक ओर जहां अमेदकी बड़ी प्रशंसा है, वहां दूसरी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...