जयशेखर सूरि कृत जैनकुमार सम्भव महाकाव्य का साहित्यिक अध्ययन | Jayashekhar Suri Krit Jainkumarsambhav Mahakavya Ka Sahitya Adhyayan

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Jayashekhar Suri Krit Jainkumarsambhav Mahakavya Ka Sahitya Adhyayan by श्याम बहादुर दीक्षित - Shyam Bahadur Dixit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2274 0. 0 1 र दा प्रथम _सच्च्छिद : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व किया है। किसी-किसी ने काव्य को दार्शनिक और किसी ने संगीतमय विचार कहा है। अकेले महाकवि वर्ड्सवर्थ ने काव्य में भावों को प्रमुखता से स्वीकार करते हुए उसके स्वरूप का यथार्थप्राय प्रकाशन किया है। जैन कवियों का काव्य-विषयक मान्यता- सामान्य जनता के हृदय में दर्शन एवं धर्म के दुरूह तथ्यों को पहुंचाने के लिए जेन धर्म प्रचारक बहुत पुराने समय से कविता का सहारा लेते आये है ओर आज भी ले रहे है। जैन दार्शनिकों का काव्य कला की ओर अकृष्ट होने का यही रहस्य है। जेनाचार्यो ने काव्य के प्रमुख तत्त्वो (रस, छन्द ओर अलंकार आदि) की तरह ही अपने-अपने ग्रन्थों मे उसके स्वरूप का भी प्रतिपादन किया है। जैनाचार्यों में हेमचन्द्र का प्रमुख स्थान है उन्होंने काव्य की परिभाषा इस प्रकार कौ है-- “अदोषौ सगुणौ सालङ्करो च शब्दार्थो काव्यम्‌.” ओर इस मूल की वृत्ति करते हए उन्होंने लिखा है- चकारो निरलंङ्कारयोरपिशब्दार्थयोः क्वचित्काव्यत्वख्यापनार्थः' । आचार्य हेमचन्द्र के पश्चात्‌ दूसरे जैनाचार्य वाग्भट है। उन्होंने काव्य की परिभाषा-




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