मेरे विश्वविद्यालय | Mere Vishvavidyalaya
श्रेणी : संस्मरण / Memoir
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
282
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मेरी इच्छासवित दिर्नोदिन प्रौदृता प्राप्त करती जा रही थी ! अब जितनी
ही अधिक मुसीबतों का सामना करना पड़ता उतनी ही प्रौढ़ता और
आत्मविर्वास मेरे अन्दर आता जाता था। छुटपन में ही में ने इस सत्य का
साक्षात्कार किया कि चतुर्दिक वातावरण का प्रतिरोध करके ही मनुष्य
-चरित्र विकास पाता है।
सुख की ज्वाला से बचने के लिए में वोल्गा की गोदियों में
चला जाता। वहां आसानी से पन्द्रह-नीस कोपेक तकं की मजरी
मिल जाया करती थी! गोदियों मे माल लादने - उतारने वाले कुलियों ,
बेकारों और उचक्कों का जमघट रहता था। उनके बीच में तप रहा
था, जैसे जलते कोयले में लोहा। हर रोज़ नये अनुभव प्राप्त होते थे
जो जलती शलाखों की तरह आत्मा पर दाग डाल जाते) मानव
अपनी सम्पूर्ण नग्नता के साथ सामने आता था -- स्वार्थं ओर लोभ
का पुतला। जीवन के प्रति विक्षोभ और तिलमिलाहट मानों यहाँ के
निवासियों का सम्बल था। दुनिया की हर चीज़ के प्रति उनका
हृदय कड़वाहट विडम्वना और शत्रुता से भरा हुआ था। साथ ही
अपने प्रति लापरवाही! इसत दृष्टिकोण मेँ मेरे लिए कशिश थी! मेरा
अपना अनुभव उसके साथ मेल खाता था। वह उस तल्ख दुनिया में
इव जाने का मुभे बलावादेरहाथा। ब्रेट हार्ट की कहानियों बीर
सस्ते उपन्यासो का असर इस दुनिया के पति मेरी कशिश को गौर
भी बढ़ा देता था।
यहाँ नये-नये चरितां से मुठभेड़ होती थी। दाहिकन पेशेवर
उठाईगीरा था। वह नार्मल तक पढ़ा हुआ था। शरीर में क्षय रोग
का धुन लग चुका था। वह अक्सर उठाईगीरी करते हुए पकड़ा जाता
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