सूफी - काव्य - विमर्श | Sufi Kabya Vimarsh

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Book Image : सूफी - काव्य - विमर्श  - Sufi Kabya Vimarsh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“वंदायनः में नखरिख ओर उसका आध्यात्मिक स्वरूप / है कुतुबन कृत “मृग रती में भी मृगावती कौ लटों की दुलना नाशिन से की गयी है यद्यपि उसमें विम्ब-विधान भिन्न प्रकारका है 1 ्वंदायन' की ही मति “सूगावती' में भी बेणी को ऐसी सर्पिणी बताया गया है जो दर्शकों को डस लेती है भौर गाएड़ी का मंत्र और उपचार भी उस पर कारगर नहीं होता ।* 'पदमावत' में भी यह चित्रित किया गया है कि पदमावंती के बाल सर्पिणी जसे है ओर जब वह बाल खोलती है तो सर्वत्र अंधेरा हो जाता है । 5 'मसघुमालती' में भी लम्बे बाल विषधर हैं, उसके वेणी खोलने से अंधकार हो जाता है । * . “ दायन्‌' के अनुसार चंदा का ललाटं देखकर देवतागण विमुग्ध हों गए और उन्होने ५..क मौर कुटुम्ब छोडकर उसकी सेवा की ।* मौलाना दाऊद ने उसके ललाट को ढ्रितीया का चन्द्र भी कहा है और कसौटी पर कसा हुआ सोना बताया है ।* उसके मुख के प्रस्वेदकण ऐसे है जैसे चन्द्रमा में नक्षत्र हष्टिगत हो रहे हों 1” “्चंदायन' और मृगावती के ललाट नणेनों मे प्रद्र समानता दिखाई पड़ती है और मृगावती के ललाटको मी द्वितीया के चद की रेखा के सहश बताया गयां १. सट जौ लटकिं भाल पर परं, जस्त रे पदुम ? नागिन रस करं । --मृपराचती, ५१।३ --स्रगावती, डा० माताप्रसाद गुप्त, आगरा १६६७, इसके बाद 'भृगादती” के समस्त उद्धरण डा० गुप्त के संस्करण के हैं । २. जो रे देख बिख लागे तादी, भोखद मरिन गारुरि आह्ी । सिर पालि आए घुघरारे, लहरन्हि भरे भुअंगम कारे । -- मृगावती, ५१।४.४ ३. बेनी छोरि फार जौ केसा, रनि होड जम दीपकं लेसा। सिर हृति सो हरि परहि शुदं बारा, सगरे देस होड अंधियारा । -पदमावतत, ४७०।१,२ -पदुसावत, डा० साताप्रसाद गुप्त, इलाहाबाद, १९६३ । 'पदमावत' के छुंदों के उद्धरण भी डा० गुप्त के संस्करण से लिये गए हैं । ४. तेहि पर कच विखधर ब्रिख सारे, लोटहि सेज सहज लुहकारे 1 --मधुमालती, ७६।१ छिटफे चिहूर सोहामिनि जगत भयउ अंधकाल । जनु चिरही जन जिय बध कारन मनमथ रोपा जाल ॥ -- मधुमालतौ ७६1६,७ समघुमालती' के समस्त उद्धरण 'मघुमालती” के डा० माताप्रसाद गुप्त के संस्करण के है, प्रकाशक मित्र प्रकाशन प्रा० लि०,. इलाहाबाद १९६६१ । ४. देखि लिलार बिमोहे देव, लोक कुटुम्ब तजि कीतिहि सेवा । -- चांदायन, ६६।१ ६. दज क चाद जानू परता, कड खर सोवन कसौटी कु । --चांदायन, ६६२ ७. वदन पयेजब्रूद जौ आवहि, चाद मांस जतु नखत दिखावह्ि 1 चदियन, ६६ ३




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