आजादी के पचास वर्षों के दौरान भारतीय विदेशी व्यापार में दिशा परिवर्तन | Aajadi Ke Pachas Varshon Ke Dauran Bharatiy Videshi Vyapar Main Disha Parivartan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
317
श्रेणी :
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No Information available about सत्येन्द्र कुमार जैन - SATYENDRA KUMAR JAIN
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(6) उपभोक्ताओ को लाभ - विश्व के उपभोक्ताओ को अच्छे ओर सस्ते उत्पादो को उपभोग
करने का अवसर मिलता है। विश्व एकाधिकार की भावना समाप्त होती है। विश्व कं मूल्यो मे
एकरूपता ओर स्थायित्व आता है ओर विश्व के उपभोक्ताओ का रहन-सहन का स्तर ऊँचा
उठता हे
(7) सभ्यता का प्रतीक ~ विदेशो से आयात एव निर्यात के कारण दो देशो के निवासी एक
दूसरे के सम्पकं मे आते है | इससे पारस्परिक ज्ञान, कला, सभ्यता ओर सस्कति का दो देशो मे
आदान-प्रदान बढता है। दो देशो कें बीच मित्रता, सहयोग एव सदभावना का विकास होता हे।
आर्थिक दृष्टि से पिछड देशो को आगे बढ़ने का अवसर मिलता है ओर इस तरह अन्तरष्ट्रीय
सभ्यता एव भाईचारे का विकास होता है|
(8) अन्य -
0) यातायात सचार एव उत्पादन तकनीको मे सुधार |
(7) कुशलता मे बृद्धि।
(77) विदेशी मुद्रा का अर्जन।
(४) अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एव शान्ति |
(/) मूल्यो मे स्थायित्व |
(1) सकटकालीन सहायता |
(र) विदेशी भ्रमण का अवसर आदि!
स्वतन्त्रता के पश्चात भारत मे आत्मनिर्भरता की जो सकल्पना स्वीकार की गयी उसकी
सर्वाधिक महत्वपूर्णं विशेषता देश के वाह्य सतुलन को बनाये रखना है, जिसकी प्राप्ति हेतु
आयात पर निर्यात मूल्यो की अधिकता अति आवश्यक बन जाता है। विदेशी व्यापार के इसी
महत्व के कारण निर्यात की सरचना, दिशा, सम्वर्धन के उपाय, व्यापार शर्तं ओर इस सन्दर्भ मे
सरकार की भूमिका से सम्बन्धित कछ महत्वपूर्ण समस्याये उभर कर सामने आती है| जिसके
समाधान के लिए आवश्यक सिद्धान्तो, नियमो ओर उपायो का अन्वेषण ओर व्यावहारिक उपयोग
की जरूरत होती हे।
' जेएकेएजेन क्रियात्मक प्रबन्ध, प्रतीक प्रकाशन, इलाहाबाद, 1998 पृष्ठ - 338
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