कुँवर उदयभान चरित | Kuwanr Uday Bhan Charit

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kuwanr Uday Bhan Charit by इंशा अल्लाह खान - Insha Allah Khan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about इंशा अल्लाह खान - Insha Allah Khan

Add Infomation AboutInsha Allah Khan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दर कुंवर उदयभान चरित । कि जि 2» कक, चुकी थी पिछड़े पहरसे रानी तो अपनी सदलं को केकरे जिधर से ट, आयी थीं उघर चली गयीं और कवर उदयान अपने घोडेकी पीट लगकर अपने ठोगेंसि मिठके अपने घर पहुंचे ॥ कुँवरजीका अनूप रूप क्या कहूं । कछ कहनेमें नहीं आता । खाना न पीना न ठगच- लना न किसी से कछ कहना न सुन्ना जिस ध्यानम थे उसभ गु रदना और घड़ी २ कछ २ सोच २ सिर घुन्ना। होते २ इस बात की व्होगाम चचो फेल गयी । किसी किसीने महाराज और महारानी से भी कहा कछ दालमें काला है । वह कुँवर उदयमान जिससे तुम्होरें घरका उजाढा है इन दिनों कछ उसके बुरे तेवर और बेड आंखें दिखाई देती हैं । घरसे वादर पाव नहीं धरता } षरवाख्यां जो किसी ` डोरे वहलातियां दै तो कषु नदीं करता एक ऊंची सांसढेता है और जो बहुत किसीने छेडा तो छपरखट पर जाके अपना सुह लपेट क आठ आठ आंसू पड़ रोता है । यह सुनतेद्दी मा बाप कुवरके पास दौडि जाये । गठे छगाया मुंह चूमा पांव पर बेटेके गिरपडे हाथ जेडि और कहा जो अपने जी की बात है सो कहते क्ये नदीं क्या दुखडां है जो पे पढे कराहते हो राजपाट जिसको चाहो देडालों कहों तो तुम क्या चाहते हो ठुम्दारा जी क्यों नहीं लगता भला वह्‌ कया जो हो नहीं सकता मुह से बालो जी खोठो जो कहने में कछ सुचकते हो तो अभी लिख भेजो जो कछ लिखोंगे ज्यों की त्यों वहीं कर तुम्हें दियेजावेंगें जो तुम कहों कूये. में गिरफ्डो तो हम दोनों अभी वूयेभे गिरपडते हैं । कहो सिर काटडालो तो सिर अपने कार उरते कुंवर उद्यभान वह जो बोलतेही न थे लिखभेजनका आसरा पे इतना बके अच्छा साप विधायि भ छ्खि भजता हं पर मेरे उस लिखमेजनेकों मे रे मुंदपर किसी ढबसे न ठाना। नहीं तोम बहत रुजाः 6 # टू




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now