सनातनधर्मोंद्धार | sanatandharmodwar

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sanatandharmodwar  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खण्ड र] सामान्य शाण्डस्य पबोद्धः ४१९ संहिताया बवैमानो किन्पासः तिस्तम्देम्षः पूरं इदीयशतङे ना इति ज्ञयते ' मेंगेस्थ- नीज' नामक रेतिक्षसिङो हि ' मेदिषोडियै › सञ्न्नकान्‌ मनुष्यान्‌ बणेयति । षदे च नात्र झुक्लयजुपो माध्यंदिनसंप्रदाये हृश्यते अत्राधिकमत्रे बर्णयिष्यत एवमयबेसहिताया आरम्बो ब्राह्मणलोकरचितधर्ममात्ररयसमयात्पशलयत्रामीत्‌ यत्तेऽतर ब्ह्मनलोकमशत्वसमयस्य गी- तसभूहेऽप्यसिभस्वि । इमानि गीतानि ऋम्गीतहुरथानि । ऋगय्षसं हित्योस्त भावी जस्छुतः स्येव भिन्नो । तथाहि ! ऋ रसषितायां मूलमङृतरतिमनोहरो भावः मेमोरणाहषू- वकः स्वाभाविको दृश्यते | अथबे;षएितायां तु तस्याः परिणामभूतर्बो भवानकसस्वभ्यो महद्धयं तेषां मायिकः प्रभाषश्च बणिते, तथा ऋक्सहितायां मनुष्याणां खतन्त्रता कायैत- क्थरत। च दृशयते अथबतहितायां तु तषां ब्राद्यणपरतन्त्रता पिध्याबिश्वासनिगडबन्धश । एवपरथमेसरतायां वहुनि माचीनान्यवेबिधानि वाक्यानि इश्यन्ते यानि तुच्छनातीयेषु मनुष्येष्वतिप्रचाछतान्पजुमीयन्ते ऋकसंहितामीतानि हु महाकुछीनेष्वेव । किंच कछहान- न्तरमथमेसहिता चतुर्था बट५दवीमध्याखूदा । आपिच प्राचीनेषु ऋग्वेदादिजाह्ाणखण्डेपु नाथ\गीतानाघ्रु्खः, तेन तद्राष्मणग्रंथखण्दरचनासमकालमेवाथवगीतानि निमिवानील- नुमीयते अतएव इरमेदादित्राह्मणग्रयानां नूतनेषु मामेष्वयवेगीत चचौऽप्युपपदत इत्युक्तम्‌ । अत्रोच्यते सिन्धुनदीतटादवपुद्ररानीतानामिति तेबदयुक्तम्‌, भमाणाभावाद्‌ बेदे ॥ भाषा ॥ मगेस्थनीज्‌, एक प्रकार ऊ मनुष्ये का वणेन भिन्द छोग ( माडिवोडिने ) कहते, करता दै और यदद नाम माध्यंदिनों से, जो शुकलयजु का प्रधान सम्प्रदाय है. भिता है । इस विषय का अधिक बणन आगे होंगा। अथबसंहिता का प्रारम्मसमय भी जब ब्राह्मणढोगों का रचित धघम प्रबछ हुआ था तब से दी है । और सब घातें इसकी ठंक ऋक्संहिता के समान हैं, और ब्राह्मण ठेर्गो के इस प्रभुत्वसमय का गानसमृह भी इस में है । जो प्रन्थ ऋकूसंहिता का बहुत प्राचीन नहीं हे उसमें भी ये गान बहुत से पाये जाते हैं । अक्संहिता के बिन्याससमय की नवीनतम योजना ये गान हैं, और अधषण में के ठीक उसी समय के हैं जिस समय वह बेद रचित हुआ था । इन देनो सं्रहो का भाव वस्तुत: सबधा मिन्न है । ऋकूसंहिता में मूलप्रकति का अति मनोहर, प्रेम उत्साहपूर्वक, स्वाभाविक भाव दख पड़ता है और अथबंण में इसके बिपरीत, उस मूऊ प्रकृति के भया- नक सत्वं का महाभय शौर उनके माया के प्रभाव बार्णित हैं । चरकसंहिता मे मनुष्यो फी स्वतन्त्रता भर कायतत्परता पाइ जाती है और अथबण में हम उनको बरह्मणो कै प्रभुख और मिथ्या बिश्वास के निगड (बड़ी ) में बंधे हुए दखते हैं । परन्तु अधप्रसंहिता मे बहुतर अति प्राचीन वाक्य भी देख जात हैं. जो अनुमान से लघुबग के मनुष्यों में अधिक प्रचलित थे, और ऋक्संहिता के गान तो उत्तमकुछ वाठे मनुष्यों के मुख्य अधिकार में थे । बड़े भारी कलह के अनन्तर भथबण के गान चतुथ बेद की गणना में गिने गए । उनका नामोछेख ऋक , साम और यजुर्वेद के जाहझण- प्रन्थों के अति प्राचीन खण्डों में कुछ भी नहीं हैं सच दै कि वे इन ब्राह्मणप्रन्थों के समकारुद्ी में बने थे और इसी कारण उनके नवीन भागों दी में उनकी चचा जाई है । समाछोचना । ““ ऋक्संहिता को हिन्दु ठाग सिन्धु नदी के तटस्थ दशों से लाए.” १




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