मेरी हिमाकत | Meri Himakat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कलाकार से ११
शंका मे जै श्रस्पष्टता होतीजो वक्रता दीखती है, बदीतोकला
की जान है।
घड़े को मैं सीधा करदूँ, तो शकाश्च कां निवारण हो जायेगा,
श्रस्यष्टता खुल जायेगी, वक्रता मिट जायेगी । सयष्टता श्रौर सरलता
की भित्ति पर तुम्शरी कला एक चण भौ न टिक सकेगी । तुम्हारे
लिए वह स्वागत की वस्तु नहीं। ठम्दारी कला श्राबाद रहे, इसी-
लिए मैं घड़े की श्रौंधी खोपड़ी पर श्रंगुलि-ताइन किया करता हूँ ।
एसी कल्याणकारी प्रक्रिया को तुम कला के लिए धातक समभ
बैठे हो--यह कितने श्राश्चर्य की वात है !
सुना था कि पोषणु-करिया में कला का दर्शन होता है, पर मुझे
तो उसका संपूण दर्शन शोषण-क्रिया में हुआ । जाड़े के दिनो में घी
तुम घड़े में से टेढ़ी अंगुलियों से निकालते हो--सीधी अंगुलियों से
तुमने कभी शोषण किया है ? सो वक्ता में ही कला का विकास है |
समन्वय के इस युग में राजनीति श्रौर कला के बीच कोई ऐसा
भारी मेद् नदीं रहा । रहा होगा कोई प्रागैतिहासिकं युग, जब राज-
नीति तो एक रस्ते जाती होगी, श्रौर कला दूसरे रास्ते । तब शायद
कलाः उपयोगितावाद के- दर्पण के सामने खड़ी होकर अपना सौंदर्य
हारती होगी । तब तुम्हारी कला काद्य सरल या मुग्ध रहा
होगा--श्राधुनिक कलाविंदों की माषा में (सडाः । श्रौर तब कला
श्रामौडी-सी होगी, सलौनी नदीं
जैसे त्राधुनिक राजनीति में सीवे बात करना गुनाह रै, वैसे
कला में पेचीदा मार्ग से हटना बेढंगापन हे ।
उपयोगिता से तुम्हारी ललित कलाश्रों का सदा झ्रसहकार-सा
रहता है । ठुम्द्दारा प्रश्न है कि सिगरेट के घुएँ का शूत्य श्न्तरिक्ष
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