मानस का कथा - शिल्प | Manas Ka Katha - Shilp

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Manas Ka Katha - Shilp by श्रीधरसिंह - Shridharsingh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ख | विषय पृष्ठ तृतीय 'अध्याय--मानस की रामकया का स्वरूप ६४-१३७ (१) कया का चयन “ बाल काण्ड ६€५-१०८ (२ ) परिवर्धन-परिव्तन « श्रयोध्या कार्ड १०६-११५ ‡ शरण्य काण्ड ११५-१२२ : किष्किन्धा काण्ड १२२-१२५ ( ३ ) प्रसंगो फा स्थानान्तरण सुन्दर काण्ड १२५१३ ( ४ ) नूतन उद्मावनाएँ ; लंका कार्ड १३२-१३६ ( ४) निष्कर्ष : उत्तर काण्ड १३६-१३७ चतुर्थं खध्याय-मानस कौ रामकया का संगठन १३८१९५५ ( १ ) मूलकथा १२३८१४० ( २ ) प्रासंगिक कथाएँ १४१-१४२ (३ ) संवघ निर्वाह १४२-९४५ पंचम श्रष्याय-पानस मे तुलषी का प्रबन्ध-फरीशल १४६-१६७ ( १ ) मानस फ प्रस्तावना १४६-१४६ ( २) बक्ता-भरोता का महत्व १४६- १५३ (३ ) केयानक गठन १५३-१५६ ( ४ ) प्रबन्ध-कौशल १५६-१६१ श्र--सम्बन्ध-निवीह्‌ १६१-१६४ च--रतित्रत्त १६४ स--रसात्मक विधान १६४-१६१ ( १) वस्ठ-वणंन १६५- १.७७ रूप-सौंदर्य-वर्णन १६६-१७० विवाह-व्णन १७०-१७२ नगर-वर्णन १७२-१७५ युद्ध-व्णन १७१्‌ प्रकृति-वर्णन १७५-१७७ (२) माव-वर्णन १७७-१६१ दर हद




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