गन्तव्य | Gantavy
श्रेणी : काव्य / Poetry, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दक्षिण की गति को यति दें, मति पूर्व दिशा की बनाती हैं गगा।
किन्तु भिटोरा को भेट सप्रेम अनुत्तर उत्तर जाती हैं गंगा।
पूर्व अपूर्व कला को विलोक अशोक वही मुड़ जाती हँ गगा)
रोज नवेली सहेली के साथ मनोरम खेल रचाती हैं गंगा।। 7 !।
आँचल दिव्य पसार कछार असार को सार बनाती है गंगा।
पातक पुज अपार उतार सदा उस पार लगाती हैं गंगा।
नीच कुलीन रहे नित कीच न रंच क्रभी अनखाती हैं गंगा।
टेक अपान क्ती हर बार निभा हरषाती हैँ गगा] 8 ||
पापाभिशाप को अंक लगा कर पुण्य ही पुण्य लुटाती हैँ गगा।
राजा को रंक को मान समान सदा धनधान्य जुटाती हैँ गंगा।
आगत के शरणागतं करे जकडे भव बन्ध छडाती है गंगा।
सोच अतीत की उन्नति, संस्कृति, वैभव, जीत जुड़ाती हैं गंगा। | 9 ।|
मीर-सुधा बसुधा को पिला सुजला सुफला बन जाती हैं गंगा।
भेद तथा भव भीति मिटा कर शान्ति प्रदा बन जाती हैं गंगा।
मो क्ष्रदा शुभदा वरदायिनी देवापगा बन जाती हँ गंगा।
बिन्दु से बिन्दु मिलाती हुई फिर सिन्धुवती बन जाती हैं गंगा।। 10 11
विरेक
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