जागृति | Jagriti

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Jagriti by तोरन देवी - Toran Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ करना श्रच्छा नहीं किन्ठु तुम्हारे उत्साह को भी रोकने को इच्छा नहीं होती |' श्राप प्रोत्साहित करने में स्वर्गीय आचायं महावीर असाद छिवेदी श्रग्रयास्य ये। श्मायक्छे जिन सम्माननीय कवियों की रचनाओं से रुचि थी, उनमें खर्गीय पं० नाथुराम शंकर शमा का नाम उल्लेखनीय है । स्वर्गाय प० श्रीयर पाठक वहुधा श्रापष्टी समस्या-पूतियो से बे प्रभावित हो जतेये) किर तो श्राप सामयिक पत्रिकाओं से समस्यापूर्ति शोर सोलिक रचनाएँ सेजने लगीं । 'रसिकमिन्र', 'साहित्यसरोवर, प्रियम्बदा”, “रसिक रहस्य, 'गृहलवच्मीः, खी दपणः, 'सर्यादा”, “प्रताप”, “सरस्वती”, “भारत- भगिनी', (जाहवी', 'कान्यकुव्जः तथा “अभ्युद्य' आदि सें आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहीं । श्रापको सुललित रचनाओं पर कई बार पुरस्कार तथा प्रमाणपत्र सी सिले । श्राप की मानसिक स्वतन्त्रता प्रारम्भ से ही यहाँ तक बढ़ी हुईं थी कि (जाहवी' (चुनार) के सम्पादक पं० श्रीकान्त उपासनी कभी कमी श्रापकी कविता यह कह कर लोाटाद्धिया करतेये कि-- च्या पत्रिका वन्द्‌ करवा दीजिएगा । फिर भी वह बड़े आग्रह से अन्य कविताएँ श्रापसे प्राप्त करते ये । यह सम्वत्‌ १६६६ वि० ढी बात है 1.) श्रापका विवाह हमीर गांव, ज़िला रायबरेली निवासी शुक्र चंशीय पं० रघुनाथ प्रसाद जी शुक्र के मँकले पुत्र पं० केलाशनाथ शुक्र बी० ए०, एल-एल० बी० के साथ सं० १४९६८ वि० में सम्पन्न हुमा था । शुक्र जी इस समय सेक्रेटेरियट के श्रच्छे पद पर श्रासीन हैं!




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