नीम की निबौलियाँ | Neem Ki Nibauliyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
151
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६)
थी वहीं । काम भी सलीके से चल रहा हू । इसलिए मेरे होने या
सडदोवे से कुछ फके मही पडता 1 न तो में पहले कभी बड़ा
आव्मौ धा ज्रौर न न्नव हू, सौर न कभी बन सकँगा । मुझ में
काई उसी खूबी नहीं है, जो मुन्ने वड़ा बना दे! साट वर्षं
का थूढ़ा हो चुका हूं । चालीस वर्ष इसी दफ्तर में बिताधं
हैं । जिन्दगी में कोई वडा काम नहीं किया । श्राज सुझे मेरे
साथियों ने श्रामवित किया है । झाज इनका स्नेह मुझ यहाँ बॉय लाया
है । यह जो मेरी प्रसा कर रह् हँ, यह तो इन्हीं की बड़ाई ह,
इन्हीं के मन की श्रद्धा हूँ । इन्हीं की दृष्टि ऊँची हैं, जी मुझे
मच पर बंठाकर मुझे श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हूँ ।
जब मान-पत्र का पढ़ेना समाप्त हुआ. नो बड़े साहव कुर्सी
व्र स उठ खड हुए। उन्होंने गांगूली बाबू की प्रशंसा करते हुए
सबका यहूं वताया कि वह् कितने सीधे शरैर् मन लगाकर काम
करनवाल व्यक्ति थे । बह फमं के एक बहुत पुराने और रच्छ
सवक थे । दफ्तर का सारा स्टाफ उनकी अनुपस्थिति सदा
अनुभव करता रहूंगा । उनके प्रति सारा स्टाफ अद्धाजलि अर्पित
क्ते हुए भगवान से उनके स्वास्थ्य के लिए कामना दौर
दीघंजीवी होने की प्रार्थना करता हँ ।
माहव ने अन्त में उन्हे एक जेब-घड़ी भेट की रौर कहा--
यदे एके चछोटी-सी भेंट में स्टाफ की और से इन्दं भेट करता ची
भ्राज ह इस स्वीकार कर गांगूली बाबू हमें झनगहीत करेंगे भर
दसकं निमित्त हम सवको बराबर याद करते रहग ।
गॉगूली बाबू ने वह घड़ी अपने दोनों हाथांमनेनी। सार
साथियों ने जोर से तालियां वजायी । साहब बैर गये अवैर गागलौ
वू वन्यवादकेख्प मेदो शव्द कहने कृ लिए खड़े रहे गये ।
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