नीम की निबौलियाँ | Neem Ki Nibauliyan

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Neem Ki Nibauliyan by गुरुबचन सिंह - Gurubachan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६) थी वहीं । काम भी सलीके से चल रहा हू । इसलिए मेरे होने या सडदोवे से कुछ फके मही पडता 1 न तो में पहले कभी बड़ा आव्मौ धा ज्रौर न न्नव हू, सौर न कभी बन सकँगा । मुझ में काई उसी खूबी नहीं है, जो मुन्ने वड़ा बना दे! साट वर्षं का थूढ़ा हो चुका हूं । चालीस वर्ष इसी दफ्तर में बिताधं हैं । जिन्दगी में कोई वडा काम नहीं किया । श्राज सुझे मेरे साथियों ने श्रामवित किया है । झाज इनका स्नेह मुझ यहाँ बॉय लाया है । यह जो मेरी प्रसा कर रह्‌ हँ, यह तो इन्हीं की बड़ाई ह, इन्हीं के मन की श्रद्धा हूँ । इन्हीं की दृष्टि ऊँची हैं, जी मुझे मच पर बंठाकर मुझे श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हूँ । जब मान-पत्र का पढ़ेना समाप्त हुआ. नो बड़े साहव कुर्सी व्र स उठ खड हुए। उन्होंने गांगूली बाबू की प्रशंसा करते हुए सबका यहूं वताया कि वह्‌ कितने सीधे शरैर्‌ मन लगाकर काम करनवाल व्यक्ति थे । बह फमं के एक बहुत पुराने और रच्छ सवक थे । दफ्तर का सारा स्टाफ उनकी अनुपस्थिति सदा अनुभव करता रहूंगा । उनके प्रति सारा स्टाफ अद्धाजलि अर्पित क्ते हुए भगवान से उनके स्वास्थ्य के लिए कामना दौर दीघंजीवी होने की प्रार्थना करता हँ । माहव ने अन्त में उन्हे एक जेब-घड़ी भेट की रौर कहा-- यदे एके चछोटी-सी भेंट में स्टाफ की और से इन्दं भेट करता ची भ्राज ह इस स्वीकार कर गांगूली बाबू हमें झनगहीत करेंगे भर दसकं निमित्त हम सवको बराबर याद करते रहग । गॉगूली बाबू ने वह घड़ी अपने दोनों हाथांमनेनी। सार साथियों ने जोर से तालियां वजायी । साहब बैर गये अवैर गागलौ वू वन्यवादकेख्प मेदो शव्द कहने कृ लिए खड़े रहे गये ।




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