पंच - प्रदीप | Panch - Pradip

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Panch - Pradip by शान्ति - Shanti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ पंच-प्रदोष ४ जीवन पर अधिकार हे ! शशव पर पाकर विजय, कुसुमों से इतिहास लिख, अधरो के उन्माद से, चल-नयनों की प्यास लिख, दुवे मानव को मिला यौवन पर अधिकार ह! जीवन पर अधिकार हैं क्रमश: जीवन-मंच पर सुख-दुख अभिनेता बने, द्र्य यवनिका के रहें, कुछ हसते, कुछ अनमने, मृदु भावों को रुदन पर, गायन पर अधिकार हे! जीवन पर अधिकार हं | प्रात उतर आता कि जब निशि के मौन निकेत से, मधुऋत्‌ आ जाती यहाँ पतभर के संकेत सं तब, प्यासी मरुभूमि को सावन पर अधिकार ह! जीवन पर अधिकार हे !




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