अंतर्राष्ट्रीय राजनीत का संक्षिप्त इतिहास 1920 - 1939 | Antrastriya Rajniti Ka Sankshipta Itihas -1920-1939

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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म श्रन्तर्राष्टय राजनीति का संक्िप्तं इतिह्‌ स॒ (१६२०-१६९३६) दाविति-संतुलन (11९ 8412710 ०१ 70८८) इस उपाय के श्राधारभूत सिद्धान्त भ्राज इतने श्रधिक गलत रूप में समभे जाने है ग्रौर इस शब्द का इतना अधिक गलत प्रयोग किया जाह किस त्रिपय परर्‌ मुस मेहीश्रपनी धारणाश्रों को स्पष्ट कर लेना प्रत्यधिक्र महत्वपूर्णा दहं । यह्‌ वरिनार्‌ प्राचीनतम काल में भी देखा जा सकता है श्रौर यद्यपि कभी-कभी इसे गलत या थ्रपुर्ग ढंग से लागू किया गया है। पर यह प्रथम विर्नेगरुद्ध क प्रारम्भ तक अन्तर्राप्ट्रीय संबंधों में सर्वत्र स्वीकृत सिद्धान्त था । तथापि, यह समभा जाता था कि गृद्धेनै छ सदा के लिए कलंकित कर दिया है प्रौर यहु बिल्कुल सच है कि ठुस नाम से १६१ तक जो प्रणाली प्रचलित थी, वह कुछ समय तक इस दुदिन को निलंबित फर शेय। पर इसके परिणामस्वरूप दोनों बास्त्र-शिविरों में शक्ति का ऐसा संपय हो गया कि झन्त में होने वाले विस्फोट से भ्रभुतपूर्व विनाश का खतरा पैदा ट्ो गया । परन्तु जब लगातार श्रौर सच मानते हुए यह बात कही जाती है कि युद्ध से शक्ति-सतूलग के महान्‌ नाम को सदाके लिए कलंकित कर दिया तब यह भी कहां जा सकता है कि स्थिति को बिल्कुल गलत रूप में समका गया श्रौर वास्तव में प्रथम विष्वेनृद्ध तधा इसकी यातनाएँ कुछ समय पहले इस दीघं काल से प्रचलित नीतिकता के स्थाम्‌ करा अ्रनिवायं परिणाम थी । शक्ति-संतुलन पोलिंबि्रस (स्‍स०01501घ56) के समय से बोसलरी 1 81177) के समय तक श्रौर इसके बाद भी जिस रूप में समभका जाना था उसकी सती परिभाषा एन्साइक्लोपीडिया ब्िटैनिका में यह की गई है कि इसका सर र्ण के बीच ऐसा न्याय्य संतुलन कायम रखना है, जो इनमें से फिसी एक को सष पर हावी होने की स्थिति में झ्राने से रोके | इस बात को ब्यायह्रारिया सज. नीति के शब्दों में कहें तो कहा जा सकता है फि सभाज की सुरक्षा फे लिए किमी संभावित भ्राक्ात्ता की अत्यधिक ताक्रतसे हीने वासे खतरे क विग माश फर वाही करनी होती थी । एसा मानने पर यह स्पष्ट कि एसमें जा बाय हैं थे राषन संघ ( लीग श्राफ नेशन्स ) की प्रसंविदा ( कौवैनेंट ) मेँ निरूगिन मामू मूरभा कै तेत्र के स्य थीं । इसलिए यह भी' एक वात है जिसमे ग्रसे प्म मरौर गद संसार एक दूसरे के जितना निकट पहले-पहल प्रतीत होते है उस कदी श्रमिक निद्र थे । सच तो यह है कि दोनों प्रशालियाँ प्ृष्ठबल ( ५५1५६१८1 ) पर अमेया करती थीं पर पृष्ठबल, जिस कासून को लागू करता था बह प्रसेक श्रवस्या में क्रिन था । राक्ति-संतुलन कहता था, 'तू भयंकर मत बन ।' युद्धो्तर प्रशानी करती थी, तु युद्ध में मत पढ़ । वास्तव में सारभूत भेद यह था कि पुरानी प्रणाली खतरे का फूड पहने सामना करती थीं भौर यह समाज से सब गृद्ध कोरोकने का श्राग्रह ने करती थी, बल्कि सिर्फ़ उन युद्धों को रोकने के लिए कहती थी जिनसे सारे समाज की हानि हो ।' ~ (1 ॥ि १ ॥ कणि धत ने लिप, फन, विपाठ 4 नजकम कत पल्सेअए। ५८५ ४) = वके ८४० चक र ८.१, त तपन भ धय १, 'शक्ति-संतुलन का वह महान खेल जो भष सदा के लिए बलंकिति हो गया इस पदाति का वसे पहले प्रयोग विल्सन ने कियां था । उत्तके चार सिद्धान्तों में से दूसरे के प्रसंग में १६ फरवरी १९१८ के भाषण में इसका प्रयोग किया गधा हू ।




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