प्रमेयकण्ठिका | Prameyakanthika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ प्रमेयकण्डठिका ज्ञान कराती हैं । इस प्रकार पदार्थका सम्पर्क होनेसे पहले इन्द्रियोंका विपयाकार होना इन्द्रियवृत्ति है । वही प्रमाण है । योगदर्दान-व्यासभाष्य में लिखा है-- “इन्द्रियप्र णालिकया.. बाह्मवस्टूपरागात. सामात्यविदोषात्मनोप्थस्थ विश्ेषावधारणम्रधाना वृत्तिः प्रव्यक्षम्‌ 1 --योगद० व्यासभा० पु० २७ इन्द्रियवृत्तिदी प्रक्रियके दिषयमें साख्यप्रवचनमाष्यकारने लिखा है-- “अत्रेयं प्रकरिया--इच्ियप्रणालिकया अर्थंसन्निकर्षण लिंगज्ञानादिना वा जादौ बुद्ध : अर्थाकारा वृत्तिः जायते ।” --सांख्यप्र° भा० प° ४७ इन्दरियदृत्तिकी समीक्षा बौद्ध, जन तथा नैयायिक ताक्रिकोने साख्योंका खण्डन किया है। बौद्ध ताकिक दिड्नरगने प्रमाणसमुच्चय (१. २७) में, नैयायिक उद्योत- करने न्यायवातिक (पु० ४३) में, जयन्तभटरने न्यायमंजरी ( प १०९ ) मेँ तथा जेन ताक्रिक अकरकने स्यायविनिक्चय (१. १६५ } मे, विद्यानन्दने तत्त्वार्थश्टोकवात्िक ( पु० १८७ ) मे, प्रभाचन्द्रने स्यायकुमुदचन्द्र ( पृ० ४०-४१ } ओर प्रमेयकमलमार्तण्ड ( पु० १९ } में देवसूरिने स्याद्रादरत्नाकर (पुण ७२) में, तथा हैमचन्द्रने प्रमाण- मीमांसा (पृ० २४) में इन्द्रियवृत्तिका विस्तारसे निर्म क्रियारहं। जिसका संक्षिप्त सार यह है- १. इन्द्रियवृत्ति अचेतन ह, इसलिए वहु पदार्थको जाननेमें साधक- तम नहीं हो सकती । २. इन्द्रियोंका पदार्थके आकार होना प्रतीतिविरुद्ध हैं। जैसे दर्पण पदार्थके आकारको अपनेमे घारण करता है वैसे श्रोत्र आदि इन्द्रियां पदार्थके आकारकों अपनेमें धारण करती नहीं देखी जाती 1 हे. इन्द्रियवृत्ति यदि इन्द्रियोंसे भिन्न है तो उसका इन्द्रियोंसे संबंध




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