चिकित्सा - चन्द्रोदय भाग 6 | Chikitsa Chandodaya Vol - 6

Chikitsa Chandodaya Vol - 6  by बाबू हरिदास वैध - Babu Haridas Vaidhya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खाँसीके निदान लक्षण । छ “चरक” में लिखा है, गले श्र मुँहमें कॉरे-से भरे रहते हैं। कंठ में खाज झाती है झौर कंठ सूखनेकी वजहसे खाया हुआ अन्न झटक जाता है । खुश्रुत कहते हैं, कंठमें खाज चलती है, भोजन कुछ-ऊुछ रुकता है, गले और तालू लिपे हुएसे रहते हैं, श्ावाज़ भारी और सरभराई '.सी हो जाती है, भोजनपर झरुचि और थम्नि मन्द दो जाती है । ९/ #+ #+ हज खासाका [किस्म । चरक, खुश्रुत और वाग्भट्ट प्रद्धति सभी झाचायोंने पाँच प्रकार की खाँसी लिखी हैं, केवल दारीत मुनिने श्ञाठ प्रकारकी लिखी हैं । “वरक” में लिखा है-- वातादिस्य्रयोये च क्ततजः क्षायजस्तथा | पन्‍्चेतेस्युनशां कासावर्धमानाः क्षयप्रदर ॥ चातज, पित्तज़, कफज, क्षतज श्रौर क्षयजके भेद्से मनुष्यकों पाँच तरहकी खाँसियाँ होती हैं । इन पाँचोंमें से पहलीसे दूसरी -उत्तरोत्तर प्रबल होती हैं. और क्रमसे बढ़कर शरीरका क्षय करती हैं । मतलब यह कि खाँसी पाँच तरहकी होती हैं:-- (१) चातज।... (२) पित्तज । (३) कफज |... (४) चातज | (५) च्यज । नोट--हारीतने सन्निपातन, वातफित्तन श्लौर कफ-पित्तज ये तीन श्रधिक रलिखी हैं; पर इन तीरनोंके लक्षण चयन काससे मिलते हैं; इसी से श्र वेदयोंने ये स्तीन नहीं लिखी हैं




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