हमारे राष्ट्रपति | Hamare Rashtrapati
श्रेणी : जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
399
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सत्यदेव विद्यालंकार - Satyadev Vidyalankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ हमारे राष्ट्रपति
नहीं रहे ग्रौग इन्लू° एफ० गैलेशडर्स के यहां चले गये. जहां दसम्नावज्ञ
ग्रोर दलील तैयार करने में काफ़ी प्रवीणता प्राम की । उसके बाद
१८६४ मं ' सम्नमनी जमशेद जी जीजीभाई द्वारा स्थापित प्रतिम्पधा-
परीक्षा पास की. जो क्रानूनी पढ़ाई के लिए. विलायत जानेवाले हिन्दु
स्नानियं को छात्रवृत्ति देने के लिए ग्वोली गई थी । १८६७ में बेरिस्टरी
धाम करके, भारत लौटकर, १८६८ में कलकत्ता-दाईकोर्ट में एडवोकेट
“बन गये । हाईकोर्ट में वकालत करनेवाले आप ही एक हिन्दुस्तानी
चरिस्टर थे। शीघ्र ही दस हज़ार रुपये माहवार कमाने की श्रापकी
इच्छा प्री हुई श्रौर सब लोगो मे पका मान सन्मान वद् गया)
सरकार ने आपको अपना स्थायी पैरोकार ( स्टेशिंडग काउन्मल )
बनाया श्रौर तीन बार दाईकोट का जज बनने के लिए. भो कहा, जो
आपने स्त्रीकार नहीं किया ।
यह वह ममयर था जव पश्चिम का माह हमें चकाचौंव कर रहा था |
उस समय बंगाल प्राचोन बातों को हीन समककर यूरो पियन ढंग च्रपनाने
के लिए पागल हो रहा था | उमेश बाबू ने भी धर्म आर जाति के बन्घनों
की परवा न की और उमेशचन्द्र से इब्लू० सी० बन गये । वप भूपा.
रहन सदन आर आचार विचार मे शाप पूरे अंग्रेज थे । शक हेखड से
तकर निगार जलाने तक शाप चप्या चप्पा ग्रेन मालूम पडत थे |
इतना ही नहीं बल्कि इंग्लेशड को श्ापने श्पना वैसा ही घर बना लिया
था, जसा कि हिन्दुस्तान आपका घर था। साल का त्राधा-ग्राधा हिस्मा
दोनो जगह बितात थे आर पैदा दिन्दुस्तान में हुए; तो सरने के लिए;
पने आखिरी दिनो मे अप इंग्लेशड जा बस थे । आपके बच्चों का
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