वैदिक धर्म | Vaidik Dharm

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vaidik Dharm by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

Add Infomation AboutShripad Damodar Satwalekar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भारतीय संस्कृतिका खरूप॑ यहद तो सवविदित है कि गणेश होकर दाश्चतीके पुत्र है । कास इनकी राजघानी वी भौर भूतस्थान ( शाघु- निक मूतान ) इनका राज्य था । गणपतीके जन्मे पूवं इल भूत जातीको कों सन्मान प्राप्त नहीं था । यज्ञमें सम्पूण देवता भाकर बेठते ये; किन्तु वह भृत जातीके कोगोंके छिये नाकर बेंडना भी कठिन था । जक जिस प्रकार कट्टर सनातनों दिन्दु अरप्रयों के प्रति ब्यवद्दार करते हैं उसी प्रकार देवजातिके छोग भुतजातीके प्रति व्यवहार किया करते ये। वास्तवममें भत जातीके छोगोंका रददन सहन भी गन्दा ही धा। इस जाती पर झाकुरका राउय था । भर इसी बाइकर के घर गणेश की उत्पत्ति हुं । गणेशाने ८-१० वषंकी अवस्थासें ही अपनी जाती एवं राष्ट्रकी संगठन शक्ति बढ़ाकर इतनी उन्नति कर दिखाई कि जिसके कारण उस जातीकी प्रतिष्ठा तो बढ़ी दी, किन्तु उसीके साथ गणपतीकों अग्रपूजाका स्थान भी प्राप्त हुआ । वह सन्मान भाजतक भी चका भारदा है । एक राट्का इतनी अल्प भवधिमें इतना उन्नत दो जाना सभीकरे छिये उद्बोघक सिद्ध डोगा। यह कार्य संगटन द्वारा उन्होंने कर दिखाया । यह संगठन कार्य चन्दने किस प्रकार कर दिखाया इसका विचार यद्ीं करना है । सबे प्रथम हम यह देखेंगे कि गणपतीने स्वयकी उन्नति किम प्रकार की । गणपतीका दारीर गणपती झरीरसे सुन्दर नहीं था । वण गोर था; किन्तु जिसे सोन्दय का जा सक्ता है बह बाच उनमें न यीं) नाक बहुत मोटी थी, शररि भोवडधाबडसा था, गौरवणं मिध्रिठछाछ रंग था | किन्तु इंसते हुए बातचीत करना भौर स्मेहसिक्त ष्यवहार रखना यह उनमें बहुत बडा झाक- षण था । एक पदरूवानूकी तरह हाथ, कन्ये, गदेन, पेट छांघ तथा अन्थ अवयव खूब हृष्टपुष्ट थे। वेसे गणेश मछविद्यासें भी निष्णात थे ही । झरोरे पहुकवानों जैसा किन्तु निरोगी था । किसी विचार करनेके भवसरपर एक पेरकी पाकथी मारकर दूरा पैर बिना पाथ मारे सौधा मोडकर नौर उसपर (१०१) हाथ रखकर तथा बह खिरसे घटाकर बेठनेकी उनकी भादतव थी । नाऊुति भव्य, रदनसइन सीधघासाघा भौर विचार उच्च, इसी प्रकार विद्या भर बुद्धि अगाध होनेके कारण दूसरॉपर प्रभाव पढ़ता था भर ऐसे इस ब्यक्तित्वपर छोग मुग्ध भी थे । गणेशके हश युदधके समय गणपती जिन शखोका उपयोग करते थे वे ये थे- गदा, खड्ग, चरुर, व्रिश्चूर, चक्र, धनुष्य, सुद गर, षर, कुठार, दिन्य भख, खट्‌बाङ्ग, पाश, तुङ्गशक्ते, दण्ड, दर, गजदन्त भादि * इसके भतिरिक्त शंकरके पास रददनेवाले पधुपत भादि शखाख इसके पास रहते ही ये । युद्ध करते समग्र राख्चाठनको निपुणताका खूब भच्छा प्रमाण मिछता था । युद्धम गणेश्चको जीतना भसस्मव था । घडानन जिस प्रकार सेना संचाकनमें निपुण था भोर इसीछिये जिसे * सेनानी ' यद्द पदवी प्राप्त थी । उसी प्रकार इसे भी सेनानी पद प्राप्त था । परन्तु घढाननके विषयमें यदद उल्लेख प्राप्त नहीं होता कि उन्होंने रा््का संगठन किया हो । किन्तु गणेशके छिये यही बात प्रसिद्ध है । गणेशकी बुद्धिमत्ता सुप्रसिद्ध थी । जो कांय दूसरों के लिये बसम्भव होता था उल्लीको यह भपनी तीव्र बुद्धिसे सरकतापूवेक कर डाठता था । दूरदर्धिता, प्रज्ञा, बुद्धि, धारणा भादिक्ा उसमे उत्तम सम्मिखनसा धा गुप्त योजना गणेक्षाने अपनी जाती का संगठन करके उसे सन्मानका स्थान प्राप्त कर! दिया । इसके छिये जिन शातोंका सायो. जन छसे करना पड़! क्षथवा शत्रुनाशनके लिये जिन डपायोंका भाश्रय छेना पढ़ा उन सबको कार्यरूपं परि णत करनेके लिए उन्हें गुप्त रखना आवइयक रहता है। गमेश्च्टी योजना इसी प्रकार गुप्त दहा करती थीं । वे तभी सामने भाती थीं जब उनका समय निश्चित कर दिया जाता था । भर्थात्‌ मगेक्चका मन योजनारभोकों गुप्त रखने योग्य था । व्यधकी धूमघाम भौर प्रदशन उसके जीवनमें नहीं था ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now