सो क्या जाने पीर पराई | So Kya Jaane Peer Parayee
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सो क्या जाने पोर पराई १७
ग्रपने-म्रापको संभाल न सकी । वह् भागकर सोफ़ेपर जा वटी श्रौर मुँह
दोनों हाथों में छिपाकर रोने लगी ! रोने की तो कोई प्रावर्यकता नहीं
थी, फिर भी वह रो रही थी ।
ष बाबू उसके पास भ्रा बठे।
“माधवी {
माघती ने सिर हिलाकर पृछा, “क्या?
“यहाँ देखो, माघवी :!
माघवी लज्जा से गड़ी जा रही थी ।
*माधवी ! |
माधवी ने हाथ नीचे कर ल्य श्रौर श्रि पोछ्कर जमीन ताकने
लगी ।
“'माघवी, इधर देखो 1
एक नज़र उन्हें देखकर वह फिर झाँख पॉंछने लगी ।
घोष बावू अपने रूमाल से उसकी झाँख पोंछने लगे । माघवी ने कुछ
कहा नहीं । घोष बाबू उसके सिर पर हाथ फेरने लगे । माधवी शिथिल
होती जा रही थी, किन्तु घोष बाबू का स्पश्षं उसे जलती दिखा के समान
बना रहा था । घोष बाबू मँजे हुए शिकारी थे । छः: महीने से वे यह श्राग
सुलगा रहे थे, ताकि उसे शीतल करने का भ्रानन्द नही, ब्रह्मानन्द उन्हें
मिल सके । भ्राज माधवी श्रपने तन की वह श्राग बुकाने आयी थी, जो
बुझाने से बुकती नहीं, बल्कि श्रौर भी घघक उठती है।
` भ्
दो साल के भीतर-भीतर माधवी
पूरी तरह बम्बइया बन चुकी । घर पर उसके पर न रुकते । केवल
सोने-भर को वह घर जाती । बाकी समय घोष बाब तथा उनके मित्रों
सो० पी०--२
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