आर्या या आर्यदृष्टि | Arya Ya Aryadrishti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ ) श्रीरामकृष्णएदेवकी मानसपूला कर रहा था, पुस्तकोमे पद रक्खा था कि परमहंसदेवकी इस म्रकार पूजा करनेसे सिद्ध पुरुषके दशन होते है उसे एक ध्वनि सुनाई पडी मातृ गुरुकों खोजो” । दूसरे दिन प्रात: लोकबविख्यात विद्वान, पं० गोंपीनाथ कबिराजके पास जाकर लड्केने यह्‌ समाचार का ओर उनकी सम्मति मागी.। कतिराजजी उसे व्यागमूर्ति ब्रह्ममयी श्रीसिद्धिमाताके पास ले गये । मा के ललाटमे सबके देखते-देखते 3#कारवेष्टित राघाकृष्ण की चित्रमूति और फिर अगवन्नरणचि् उद्य होकर लय होगया | इसे देखकर बालकके हृदयम प्रगाद्‌ भगवस्मेमक्रा उदय हुआ ब्मौर उसने माताके चरणोंमे आत्मसमपंण करदिया 1 माता की अनुदिन अ्रनुपम अनुकम्पा होनेलगी। मा ने भगवस्प्रम साधनाकी दीक्षा प्रदानकर कठोर तप कराया आर अपनी करपासे कृताथ करदिया | इसी बीचसे एकबारकी घटना है. जबकि काशी -हिन्दू-विश्व- विद्यालयकी रजत जयन्ती होने जारही थी, मेरी समारोदद द्शनकी अभिलाषा हुई । इधर नन्हीं बालिका श्रीमती सुशील- कुमारी देवी वयलाभकर जब पूणे युवती हुई तब उसे पता चला कि उसका भावी पति तो साधूबाबा होगया। इधर उधरके नवशिकितलोग पुनविवाहकी कानाफसी करने लगे | परन्तु उभय ब्राह्मणुकुल्लोंमे थी घ्मेशास्त्रके प्रति कठोर निष्ठा अतएव इस बातको स्वीकार करना सवथा श्रसम्भव था और लड़कीने स्वयं मी इस भस्तावको अस्वीकार करदिया । “पु गृह कवः कबं सुरारी”? की पक्ति चरिता करती हुई वह जीवनयापन करने लगी .। स्वभावतः उसके मनमे वावा दशंन्‌ की उत्कट अभिलाषा हदं । अन््ो्त्वा श्चपने. बालक बाबु `




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