आर्या या आर्यदृष्टि | Arya Ya Aryadrishti
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
47 MB
कुल पष्ठ :
411
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १६ )
श्रीरामकृष्णएदेवकी मानसपूला कर रहा था, पुस्तकोमे पद
रक्खा था कि परमहंसदेवकी इस म्रकार पूजा करनेसे
सिद्ध पुरुषके दशन होते है उसे एक ध्वनि सुनाई पडी
मातृ गुरुकों खोजो” । दूसरे दिन प्रात: लोकबविख्यात
विद्वान, पं० गोंपीनाथ कबिराजके पास जाकर लड्केने यह्
समाचार का ओर उनकी सम्मति मागी.। कतिराजजी
उसे व्यागमूर्ति ब्रह्ममयी श्रीसिद्धिमाताके पास ले गये ।
मा के ललाटमे सबके देखते-देखते 3#कारवेष्टित राघाकृष्ण की
चित्रमूति और फिर अगवन्नरणचि् उद्य होकर लय होगया |
इसे देखकर बालकके हृदयम प्रगाद् भगवस्मेमक्रा उदय हुआ
ब्मौर उसने माताके चरणोंमे आत्मसमपंण करदिया 1 माता
की अनुदिन अ्रनुपम अनुकम्पा होनेलगी। मा ने भगवस्प्रम
साधनाकी दीक्षा प्रदानकर कठोर तप कराया आर अपनी
करपासे कृताथ करदिया |
इसी बीचसे एकबारकी घटना है. जबकि काशी -हिन्दू-विश्व-
विद्यालयकी रजत जयन्ती होने जारही थी, मेरी समारोदद
द्शनकी अभिलाषा हुई । इधर नन्हीं बालिका श्रीमती सुशील-
कुमारी देवी वयलाभकर जब पूणे युवती हुई तब उसे पता
चला कि उसका भावी पति तो साधूबाबा होगया। इधर
उधरके नवशिकितलोग पुनविवाहकी कानाफसी करने लगे |
परन्तु उभय ब्राह्मणुकुल्लोंमे थी घ्मेशास्त्रके प्रति कठोर निष्ठा
अतएव इस बातको स्वीकार करना सवथा श्रसम्भव था और
लड़कीने स्वयं मी इस भस्तावको अस्वीकार करदिया । “पु
गृह कवः कबं सुरारी”? की पक्ति चरिता करती हुई वह
जीवनयापन करने लगी .। स्वभावतः उसके मनमे वावा दशंन्
की उत्कट अभिलाषा हदं । अन््ो्त्वा श्चपने. बालक बाबु `
User Reviews
No Reviews | Add Yours...