द्विभाषीय अशोकीय अभिलेश | Dwibhashiya Ashokiya Abhilekha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शिलानन्द हेमराज - Shilanand Hemraj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के सदृश था। सम्मवत उसे किसी ढाचे मे सभा-स्थल के बीच मे खड़ा कर दिया गया। हर तीसरे महीने
जनता की इसका धर्म-लेख सुनाया जाता था। द्विभाषीय अभिलेखो मे शिलाखण्ड-लेख और शिलार्फलकं-
लेख भी मिलते है , लेकिन सब-से अदभुत है तक्षशिला का स्तम्भलेख । सामान्यत अशोकं के स्तम्भ
चुनार के बलुए पत्थर से बनते थे और उनपर सुप्रसिद्ध मौर्य पॉलिश् करवाई जाती थी जिससे वे अतति
चमकदार और चिकने हो जाते थे '। पर तक्षशिला का अरामी अभिलेख सगमरमर के अष्टभुजाकार स्तम्भ
पर अकित हुआ। जी० फुसमन '' जैसे विद्वान अशोकीय स्तम्भ' कहने से भी हिंचकिचाते है क्योकि वे
ईरानी प्रभाव पर अधिक बल देते है। विदेशी कारीगरी की अच्छाइया अपनाने मे कोई बुराई नहीं है परन्तु
श्रीराम गोयल की बात माने कि अशोकीय शिल्पकारों ने उन्हे परिपक्व भारतीय रूप तक विकसित किया।
222 अशोकीय लिपिकार ^9 10144 90858
अशोकं के स्वदेशी शित्पकारो ने शिलाओ की चमकाया परन्तु विभाषा मे द्विभाषिक लेख लिखवाने के
लिए राजा ठन विदेशी लिपिकायो के सहयोग पर निर्भर थे जो सीमान्त क्षेत्र की प्रजा मे सम्मिलित हो
कर स्वदेशी बन चुके थे। ठस काल का कोई भी अरामी अथवा यूनानी लिपिकं पश्चिम एशिया की प्राचीन
लिपिकीय परम्परा सै अलग नही हो सकता था ।“्रस्तुतिकरण की शैली मे ओर शब्दावली के चयन मे
उसे जैसा-तैसा करके परम्परा का पालन करना था! फिर भी अशोकं के प्रशासनिक प्रबघ के अधीन होने
के कारण उसे बहुत-कुछं पाटलिपुत्र की दप्तरशाष्ठी पद्धति का भी आदर करना था ।
के०अल्० यार्नर्त् ने “अशोकीय लिपिको के सवघ मे कुछ नये सुञ्ञाव दिये ` पाटलिपुत्र के दरबारी
लिपिक सम्राट के आदेशानुसार प्रथम मानक प्रारूप ( मास्टर् कंपी ) तैयार करते थे। तब राजधानी से
(1) 2० श्रीरास सोयत प्रियदर्शी अशोक पृ० 143 |
(2) © (881464४ ^5०।ख छातं 9] (८४८०००९५ ॥ वा> ॥ 2 1987 9 780 ( देण शोध के प्रथम भाग मै पृ० 105}
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