जनमांग - नक्षत्र - दीपिका भाग - 1 | Janmang - Nakshatra - Deepika Bhag-1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ }. मेष विनी कि ;, - कत्तिका .९, चरण ५ वृषभे ,छत्तिका ३ च० ,.. रोहिणी + प्रगशिसि २ चः, ३. मिथुन; मृगशिरा? -- आदर „ पुनर्वसु २५ ८..ककं ~, पुनर्वखु १... पुष्यः --., -आष्टेषा ; १. सिंह मघा पूवफाल्युनी-.. उत्ता. फाल्गुनी .९, ६. केल्या उत्तरा ल्गुनी रे दस्त चित्रा २ 9. ठला - चित्रा २ ; स्वाती विशाखा, .रे ८. वृश्चिक विशाखा १ ,„ श्रनुराधुा , „ ,-ख्वे्ा,.,, - ६; घन , मूल , . पूवापादा , - ' उत्तराषादा १ ,०, मकर . उत्तराषाढा ३ , , ,श्रव्ण , धनिष्ठा २८ ; १, कुंभ धनिष्ठा , - , शतभिषा, पूोभद्रपदा,३ ; १२. मीन पू्वासाद्रपदा उत्तरामाद्रपदा.. रेवती, , १ नक्षत्रमण्डलं विचार ` ` । 7 ^ १, १, पीछे कहां जा तुका, है कि, समस्त नन्र्पण्डल .मगवान्‌ ) विष्णु का स्वरूप है 1, इसीका « दूसरा नाम शिशुमास्चक्रः भी है। इस चक्र का वर्णन “विष्णुपुराण.. के .दिपीय: अश भ ¡ सविस्तारं किया गया दे । नचो के स्वानी नवग्रह और, उनके २ विभागो से ६२ राशियो'का निर्माण भी -दिखाया; जा चुका. है ` श्रच इन्दी १२;'राशियो के माध्यम से नक्घ्ौ का ६० सवत्सरो तक व्रगीकस्ण घताया जा रहा,है। ` , “ध्यान रहे कि इन, 'नवग्रहो में सूर्य हो मुख्य है । वहीं वास्तविक ज्योति है शरोर उसीके प्रकाश से सारा विश्व प्रकाशित है | श्रतः नक्षत्रों के वर्गीकरण मे.भी इसका महत्वपूण हाथ दै । उपर्युक्त शिशमास्वक्र की जिस दिशा मे सूर्यं भगवान्‌ उदित होते है उसे पूर्व और जिस दिशा मैं प्रस्त ,होते हैं. उसे -पश्चिम, कहते हैं । इसके, दाहिने * दक्षिण . और बॉयें उत्तर दिशा समभनी, चाहिये ।




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