पद्म - पराग १ | Padm- Parag 1

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Padm- Parag 1 by पद्मसिंह शर्मा - Padmsingh Sharmaपारस नाथ सिंह - Paras Nath Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पद्य-परागवी जीवनी न द ` केल-संगरह--पद्य-परागः-के प्रकाशित होनेकी चर्चा बहुदः दिनोंसे चछ रही थी ! अनेकं साहिय-्रेमिरयोका अनुरोध था, अनुरोध करनेवालोंमें सब श्र णिके सज्जन थे, गुरुजन, सुहृत्समु- दाय) सहृदय समालोचना-परेमी, अपने पराये-घरके वाहरके--जिसेः कोई लेख किसी कारणसे पसन्द आ गया, सममा एेसेदी चोर भी होंगे, वस वह इसी आशासे अनुरोध करने छगे; लेखो के कुछ ऐसे प्रेमी भी थे; जो बराबर देखते आ रहे थे-कोई लेख कहीं किसी पत्रमें छपा, उन्हों ने हू'ढ-भाठकर ज़रूर पढ़ा; उनका तक़ाज़ा बहुत तेज़ था--वह्‌ तरह तरहते दिर बहते ओर उकसाते धे । अफ़सोस दै उनमेंसे कई आज न रहे, उनके जीवनमें यह लेख-संप्रह न छप सका; वह इसे अपनी माँखोंसे प्रकाशित न देख सके ! यह्द बात. जव याद्‌ आती दै, दिरपर एक चोटसी छगती दै--स्वगीय पण्डितः भीमसेनजी शर्मा; पणिडत राधाकृष्ण का ( एम०ए० ) और पाण्डेय, जगत्नाथप्रसाद( एम० ए० ) आदि कै मित्रोकी यादने इस वक्त तड्पा दिया । संवत्‌ १९७५ व्रि मे काशीकै ज्ञान-मर्डल्मे “विहारीकी सतरर्हण्का भूमिका-माग पहली वार अभी छपदी. रदा था कि . लेख-संप्रहका सवाठ सामने आाया--यार दोस्तेनि याद्‌ दिखाया कि




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