आचार्य कुन्द कुन्द और उनका समयसार | Aacharya Kund Kund Aur Unka Samaysar

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Book Image : आचार्य कुन्द कुन्द और उनका समयसार  - Aacharya Kund Kund Aur Unka Samaysar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिद्ध समझना घादिषु 1 मय तो वस्तु कअगर षू वस्तु नहा है1 पदि व्यवहार कय वस्तु च कपौ एक अणक बताता है सो निश्चय नय भी सस्तु थे एड ही बश गो बताने वाता है । व्यवहार भेटाश वो ग्रहण बरता है और निश्चय अभेराश को ग्रहण भरता है । डिन्तु वस्तु भेदाभेदा मक है। वास्तव मे ता दोनो हो नय दस्तु के साय पलपाते हैं । वस्तु को समझने वे दिये दोनों नयों वा पपपात आवश्यय है। समझने के वाद वस्तु दा आनन्द लेने न पिए किमोभौ पपात कौ आवश्यकता नहीं है। आ० कुदकुल दमी तथ्य को इस प्रशार प्रवट करते हैं । जीव बम्मे वृद्ध पुटठ चेटि वबहारणयभणिद सुद्धणयस्म दु जोव अबट्ट पुटढ हवइ कम्म ।१४१॥ बम्म वमवद्ध जीव एवं तु जाण णयपर्ष पबदातिकरतों पुण भण्णति जो सो समयमारा ।॥१४९॥ दोण्ट्‌ वि णयाण त्रथियं जाणइ णि तु समय पडवद्धो फट णपपकख्र निणहनि शिदिवि णयपक्वपरिहीणो ॥१४ अघ--व्यवहार नय बतना है कि जीव मे कम बद्ध और स्पृष्त है शुद्ध नय बहता है दि जद में कम बद्ध परे नहा है । तथ्य यह है -वम जीव से बद्ध हैं या गवेद्ध हैं यह दाना हो नय पल हें । सपयसार तो इन दोनों हो पन्नों से रहित है। इसजिए समय से प्रतिदद्ध आआमा दोनों ली नया के कथन वा जानता है पर जिसी भा नय पप् व दहाँ ग्रदण नहा बरता कयावि वह स्वयं नय पथ से रहित है । उक्त हीना शाधाजा मे ध्यवहार लय और निश्चय नय दोनो कौ पणपातं फविजिकर एवं ही कोटि से रखा है । ऐसा सही है करि व्यवहारं नयतो पपात है आर निश्चय नय दास्तविद है । इस कथन से भी यहीं प्रमाणित होता है दि अपने दिपय के प्रतिपाटन से साया का लेकर होना ही नय भूनाष हैं और विरपस दशा मदानों ही अभनाय हैं । इन गायाआ पर नादाय अमृतचद्रम अनक वलशों की रचना ही है । उहाहरण थे लिए उनमें से हम यहाँ एड बनश देते हैं एवस्य बद्धा ने तथा परस्प चिनतित्योर्शदिति पसपातों थस्तयवंरी घ्युपपपात-+ स्तस्याम्ति नित्य खत चिच्चि व ॥3०॥1 एक नय बहसा है आमा वर्मों से दद्ध है डूसरा नय बहता है आमा पमों सदद्ध नहीं है । ये दोना हो चतय रुप आमा मे पदपात हैं। जो तत्वनजानी हैं बौर पत्पात से शय हैं उनके लिये आम दियु सामाय बर्दु है । १७




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