श्रीभगवद्गीता मूल अन्वय भाषानुवाद भाग - 1 | Shreebhagawadgeeta Mool Anvay Bhashanuvad Bhag - 1

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Shreebhagawadgeeta Mool Anvay Bhashanuvad Bhag - 1 by स्वामी विवेकानन्द - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) था | इस समय श्रीभारतधम्मेमहामरडल के नेताओं के यत्र से एक विस्तृत सुप्रपन्ध प्राप्त हुधा है श्रौर उसका भाप्य भी संस्कृत भाषा में बनरदा है । कर्म्ममीमांसा यदिच लुप्त हुई थी तथापि उसका एक टहत ग्रन्थ पाया जाता था किन्तु दैवीमीमांसा ( मध्यर्मामांसा वा भक्षिमीमांसा ) का कोई ग्रन्थ भी नहीं मिलता था । इस समय उसका भी एक सिदान्तभृत्त सूत्रप्रनथ मिला है झोर उसका संस्कृत भाप्य प्रणीत होकर प्रकाशित होगया है। भक्रि किसको कहते हूं, भक्ति के भेद कितने प्रकार हैं, उपाप्तना के द्वारा मुद्धि किस प्रकार सम्भव है, भगवान्‌ का श्रानन्दमय सरूप कया है, भगवान्‌ के ब्रह्म हश और विरादू इन तीन रूपों में मेद क्या है, भक्ति के प्रधान प्रधान श्राचायय फ्रपिगण के स्त्रतन्त्र सत्तन्त्र मत क्या है, सृष्टि का विस्तृत रहस्य क्या है; श्ध्यात्म सषि पथा दै, प्रदेव सि कष्या ह, श्रधिभृत दि कया है, ऋषि किसको कहते हैं, देवदेवी किसको फहते हं, पिह पिसिकौ फदते हे, उनके साथ जग का सम्बन्ध क्या है, श्रवतार केसे होते हैं, श्रवतार कितने प्रकार के हैं; भक्ति के द्वारा मुक्ति किस प्रकार दोसक़ी है, चार प्रकार के योग का लक्षण दयौर उपासना का भेद कितने प्रकार का दै, उपासना शोर भक्ति के झाधय से साधक किस प्रकार मुक्लिभ करने में समर्थ होता है कर्म्म मीमांता करा श्रन्तिम लक्ष्य कया हे, टैवीमीमांसा का श्रन्तिम लक्ष्य क्रया है, एव ब्रह्ममीमांसा का श्रन्तिम लक्ष्य कया है इत्यादि विपय इस दर्शन शाख में वर्णित है। इसी दर्शनशाख्र के सोप होने से योग श्रोर उपासना इन दोनों की एफता सिद्ध करने के विपय में उन्नत जानियों को भी विमोहित होते हुए देखा गया है। सम्रम शानभूमिक्रा अन्तिम दर्शन ब्रह्ममीमांसा है इसको वेदान्त कहाजाता | उसका श्रति उत्तम भाष्य श्रीभगवान शद्टराचाययं प्रशीत पाया जाता है । फ़िन्त इतने दिनतक देवॉर्मीमांसा दर्शन के ल श्रवस्था में रहने भे श्रीर उपास्क सम्प्रदायों के श्रद्देतयाद को देतवाद में परिणत करने की चेष्टा करने पदान्त विचार में श्रनेक श्रसुविधाएँ उत्पन्न हुई हैं । यदि मध्यमीमांसा बीच के समय में विलुप्त न हाती तो द्वेत श्र श्रद्वेतवाद का विरोध कदापि सेघ- दित ने होता । न्यायदशैन काजो श्राप भाप्य मिलता दै यह श्रततीव विस्तृत है ही । रैर [+ 9 कै क १ र शेपिक्रदशीन का विस्तृत भाष्य संस्कृत में प्रणीत दोहा दे । योगदरैन का




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