साहित्य - तरंगिणी | Sahitya-trangini
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शपन् काञ्य
हुआ । अपश्च श अथव पाझतासाल हिन्दी के दोहों का. सबसे प्राचीन
रूप सरहपा के दोहा म मिलता हे । उदाहरण के लिये :--
इश्च दिश्नस शिसदहिं अदीरि मई, निहू जायु सिमाण॒ ।
खो चित्त सिद्धी
जसि, सदञ संवस जण ॥
-शबरपा;-संचत् ८३७
श्राप इत्रियवशौ दो सिद्ध थे ओर विकतुमशिला (भागलपुर) चिर्व-
बिद्यास्लव के श्ाचार्य थे । आपने पञ्चःश मे शुन्यत्ता चि, षडङ्ग-योग
रादि अलेक श्चनाए की ह ! उदाहरण :--
ऊचा ऊचां पावत तहि बखड स्वरी वाली !
मोरंगि पिच्छं परिदश सबरी गौवत गु'जरिमाली.॥
उमत शबरों पागल शचरो मा कर गुली रुद्ाड! ।
तोदो रि शिश्न धरिणी नामे सदज् सुन्दरी 1} इत्यादि ४ `
कविराज स्वयंभूदेव; संवत् ८४७
श्प उन्तम कवि थे ¦ आपके रामायण श्च महामारत मध कचित्न
{दी इष्टि से मज्य सस्र इद हे । उदाहरण ; †
सहसत्ति दिद मेदोयरिए, दिद्धिए. चल भउदालइ ।
दूरा जे समाहड वच्छुयत्ते, णं रीलुप्यल मोल ||
हन परवत् चखुङ्पा (संवत् ८५७); ल्पा (संवत् ८८७) वथा
पुष्पव (संयत् १०१६) ने अपश्च श या प्राज्तामास हिन्दी मे उत्तम
रचना की । (संवत् ६६०) त देवसेन इष् |
देवसेन; संवत् ६8०
इन्होने “श्ावकाचार' नामक रैन अन्थ छी रचना की, जिसकी
सषा पहले कविर्यो की माषा की चेका हिन्दी के कहीं अधिक समीप
'डै। उदाइरण के लिये :--- `
जे ज़िशु सासख माषियउ, सो मह कदियउ खार 1
जो पाले सइ माड करि; सो तरि परावद परः+
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