साहित्य - तरंगिणी | Sahitya-trangini

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sahitya-trangini by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
शपन्‌ काञ्य हुआ । अपश्च श अथव पाझतासाल हिन्दी के दोहों का. सबसे प्राचीन रूप सरहपा के दोहा म मिलता हे । उदाहरण के लिये :-- इश्च दिश्नस शिसदहिं अदीरि मई, निहू जायु सिमाण॒ । खो चित्त सिद्धी जसि, सदञ संवस जण ॥ -शबरपा;-संचत्‌ ८३७ श्राप इत्रियवशौ दो सिद्ध थे ओर विकतुमशिला (भागलपुर) चिर्व- बिद्यास्लव के श्ाचार्य थे । आपने पञ्चःश मे शुन्यत्ता चि, षडङ्ग-योग रादि अलेक श्चनाए की ह ! उदाहरण :-- ऊचा ऊचां पावत तहि बखड स्वरी वाली ! मोरंगि पिच्छं परिदश सबरी गौवत गु'जरिमाली.॥ उमत शबरों पागल शचरो मा कर गुली रुद्ाड! । तोदो रि शिश्न धरिणी नामे सदज् सुन्दरी 1} इत्यादि ४ ` कविराज स्वयंभूदेव; संवत्‌ ८४७ श्प उन्तम कवि थे ¦ आपके रामायण श्च महामारत मध कचित्न {दी इष्टि से मज्य सस्र इद हे । उदाहरण ; † सहसत्ति दिद मेदोयरिए, दिद्धिए. चल भउदालइ । दूरा जे समाहड वच्छुयत्ते, णं रीलुप्यल मोल || हन परवत्‌ चखुङ्पा (संवत्‌ ८५७); ल्पा (संवत्‌ ८८७) वथा पुष्पव (संयत्‌ १०१६) ने अपश्च श या प्राज्तामास हिन्दी मे उत्तम रचना की । (संवत्‌ ६६०) त देवसेन इष्‌ | देवसेन; संवत्‌ ६8० इन्होने “श्ावकाचार' नामक रैन अन्थ छी रचना की, जिसकी सषा पहले कविर्यो की माषा की चेका हिन्दी के कहीं अधिक समीप 'डै। उदाइरण के लिये :--- ` जे ज़िशु सासख माषियउ, सो मह कदियउ खार 1 जो पाले सइ माड करि; सो तरि परावद परः+ 1 न =




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now