लेख और पत्र | Lekh Or Patra

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Lekh Or Patra by महात्मा टाल्स्टाय - Mahatma Talstay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छो नषा क्यो कसे द १ “र भयीत्‌ पाटिकेको तरह मौजके साथ रहने भोर उस बिवेक- रूपी चाधाको दूर करने व्यि जो वुरा काम करते हुए फोरन्‌ हाथ परुड़ छेती दे--मनुष्य ऐसा उपाय करता दे कि विवेक के , ॐ कि अ * ¢, ॐ ० चद ९ बुद्धि थे निकस्मी हो जाय, ठीक वसे दी जसं कोई मनुष्य अपनी आखं हौ वन्द्‌ शरफे भपनी ध्येय वस्तुके दुशेनसे बचता दै-( यने थोदा नकषा र ढेता है ) । (२) संसारमसें नशेढी चीज़ोंकी जो इतनी खपत है उसका यह कारण नदी कि, उनमें कोट विशेष स्वाद दो वा उनसे कुछ भनिन्द्‌ मिख्ता या दिल बदढता दो, किन्तु उसका यद्द कारण हे कि मनुष्यको अपनी विवेकबुद्धिकी आाज्ञाकी ओर भानाकानी करनेमें इनकी अवइयकता पढ़ती दे । | एक दिनकी बात दे कि में एक गीषे जारा था; सौर उसी गढीसे कुछ एफेवान भी भापसभ बात करते हुए गुज्धर रदे थे । मेने उनमेंसे एकके मुद्दे यद सुना:-- सचमुच, मनुष्य जब शमे रहता दै या कोद नशा कयि नदीं रहवा दव बह खराव काम रुरनेमे शरमाता है । मनुष्य जव होशमे रहता दे या नकषेमं चूर नदीं रहता दय वह्‌ उख कामो करने श्षरमाता है जिसे वह नेष्टी इाउतमें बहुत ठीक समझता दे । लोग नशा क्यों करते हैं ? इस प्रइनका उत्तर इसी एक वाक्यंमें दै। छोग या तो विवेक- बुद्धिके विरुद्ध काम करनेक पश्चातू होनेवाठी छञ्नासे वचने छिये नदा करते हैं 'य। पाहिछेसे दी भपनेमें विवेक विरुद्ध काम करनेकी धष्टता ढानिके छिये । `




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