भक्त - नारी | Bhakt Naree

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Bhakt Naree by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शवसी ११ डए गम्भीर खरसे कहा कि शरावरी ! कया दू नाचती ही रहेगी ? देख ! श्रीराम कितनी देरसे खड़े हैं. ? क्या इनको बैठाकर च इनका आतिथ्य नी करेगी १ इन दाव्दोंसे शबरीकों चेत हुआ ओर उस- तौ दृष्टा ठ वदा सिद्धा समुत्थाय कृताञ्जलिः 1 पादौ जग्राह रामस्य लक्ष्मणस्य च धीमतः ॥ पाद्यमाचमनीयं ख सर्वं पादायथाविधि। तसुचाच ततो समः श्रमणीं धर्मसंखिताम्‌ ॥ ८ वा० रा० श्रा० का० स० ७४) धर्मपरायणा तापसी सिद्धा सेन्यासिनीने धीमान्‌ श्रीराम- उक्ष्मणको देखकर उनके चरणोमे हाथ जोड़कर प्रणाम किया और पाय आचमन आदिसे उनका पूजन किया । ं सादर जल ले चरण पारी \ आति सुन्दर आसन बेठारी ॥ भगवान्‌ श्रीराम उस धर्मनिरता शवरीसे पूछने ख्गे- कच्चित्ते निर्जिता विधवाः कच्चित्ते वर्धते तपः। कच्चित्ते नियतः कोप आहारश्च तपोधने ॥ कञिन्ते नियमाः भ्राप्ताः कञ्चित मनसः खसम्‌ । कच्चित्ते शुश्रूषा सफला चारुभाषिणी | (बा रा० श्रा सण ७४)




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