महेस सतसई | Mahes Satasai
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
67
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मद्देस सतसद् ५५
एही देस दरसन दिहिमि, बरँँभा निसुत महेस ।
सरसुति लखिंमी पार्वति, पूजित प्रथम गरलनेस !1११४
सात रिषी परसिद्ध भे, राजा भरत महान 1
देवनदी आई जवहि सब कहु भा कल्यान । १२०
इहैं राम जौ कृष्न के, भए परम अवतार।
महा बुद्ध गाँधी भ्ये, करना कलित उदार । १२१५
एही देस-माँ होइ गये, बालमीकि मौ ब्यास |
कालिदास, कृदिदाप अ कम्बन, तुलसीदास 11१२२
सब विधि सब के ध्यान कं, सरसुि सुसिरि गलेस 1
ई सतसैया कह रचत, अति मतिमन्द महेस ॥१९३
माता मायत्नी सुनहु, करहु मन दास निरासं ॥
एहि बुधि नल विश्वास नहि, तुव करना कँ अक्त ।१२४
सहदैधा सज्जन पर्ढाहुि विद्या बुद्धि अगार ।
कह महस तुष्टि होद् जह, तहं करि लि शुधार ॥१२५
धर् पर तो परताप हम, बिद्याभवत महेस ।
अन्तह्िं नारायन मिले, पुर्न नाम हुमेस ।॥१२६
मनु सतक्पा ते भई, मानव सृष्टि अतूप ।
जाते लोग मनुज कुह, मनेई अवधी खूप ॥१२७
सज्जनं सज्जनता लहु दुर्जन दुरव्यौहार ।
सोभा देत सरोज नित, पक मलिन अचार ॥ १२८
साघु सन्त क मंडली, सब कर कर उपकार |
पे कुछ बगुला भगत नर, ताकत रहत सिकार ११९८६
गाँधी नेहरू तिलक भौ बिपिन गोखले साहि!
भवतौ नेता कुटिल बहु, कुटिलाई मने माहि 1१३२
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