महेस सतसई | Mahes Satasai

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Mahes Satasai by महेश अवस्थी - Mahesh Avasthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मद्देस सतसद् ५५ एही देस दरसन दिहिमि, बरँँभा निसुत महेस । सरसुति लखिंमी पार्वति, पूजित प्रथम गरलनेस !1११४ सात रिषी परसिद्ध भे, राजा भरत महान 1 देवनदी आई जवहि सब कहु भा कल्यान । १२० इहैं राम जौ कृष्न के, भए परम अवतार। महा बुद्ध गाँधी भ्ये, करना कलित उदार । १२१५ एही देस-माँ होइ गये, बालमीकि मौ ब्यास | कालिदास, कृदिदाप अ कम्बन, तुलसीदास 11१२२ सब विधि सब के ध्यान कं, सरसुि सुसिरि गलेस 1 ई सतसैया कह रचत, अति मतिमन्द महेस ॥१९३ माता मायत्नी सुनहु, करहु मन दास निरासं ॥ एहि बुधि नल विश्वास नहि, तुव करना कँ अक्त ।१२४ सहदैधा सज्जन पर्ढाहुि विद्या बुद्धि अगार । कह महस तुष्टि होद्‌ जह, तहं करि लि शुधार ॥१२५ धर्‌ पर तो परताप हम, बिद्याभवत महेस । अन्तह्िं नारायन मिले, पुर्न नाम हुमेस ।॥१२६ मनु सतक्पा ते भई, मानव सृष्टि अतूप । जाते लोग मनुज कुह, मनेई अवधी खूप ॥१२७ सज्जनं सज्जनता लहु दुर्जन दुरव्यौहार । सोभा देत सरोज नित, पक मलिन अचार ॥ १२८ साघु सन्त क मंडली, सब कर कर उपकार | पे कुछ बगुला भगत नर, ताकत रहत सिकार ११९८६ गाँधी नेहरू तिलक भौ बिपिन गोखले साहि! भवतौ नेता कुटिल बहु, कुटिलाई मने माहि 1१३२




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