वैदिक - स्वर - मीमांसा | Vaidik - Svar - Meemansa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वर शब्द के सथं मौर पर्याय प्‌ २-बण-विशेष--शिक्षा-शास्र, मरतनास्यशाख्रे, प्रातिशाख्य, ऋक्तन्तर ओर कातन्त्र आदि मेँ स्वर शब्द्‌ उन अकारादि वणो के लिए प्रयुक्तं दोता है, जिनका उच्चारण वर्णान्तर ङी सहायता के बिना स्वतन्त्र रूप से होता है ।* यया-- विवृतकरणा' स्वरा: । आपिशल* (३1७) तया पाणिनीय* (३८) शिक्षा | अकाराद्याः स्वरा ज्ञेया ओकारान्तारचतु्देश । नाव्य-द्यात्र १४1८ ॥ एते स्वरा” । क्पराति° १।३॥ तत्र स्वरा: प्रथसम्‌ । वाजसनेय प्राति० ८1२ पोडछशा दितः स्वरा: । तैचि० प्राति० ₹९॥) अ इति आ इति ** स्वसः } स्तन्त्र १।२॥ तत्र चतुरैशादौ सरा. । कातन्व १।९।२॥ ` पाणिनीय वैयाकरण इन अकारादि स्वरो का अच्‌? प्रत्याहार से भोर फिट-सृक्चकार अषु प्रत्याहार ^ से व्यवहार करते ई 1 हम मी इस निचन्धमें सन्दे ट-निवृ्ति ॐ लिए अकारादि वणौ का निदेश अच नामसे करगे) ३े-षद्जादि सप्रक--समीत शाख जर उनसे सवरद्ध प्रकरण में षद्ल; कषम, गान्धार, मध्यम, पञ्चम, पैवत और निषाद नामक ध्वनि-विशेषों के किष स्वर खब्द्‌ का प्रयोग दोत्ता दै । यथा-- १, पाड्चात्य विद्धान्‌ तथा उनके जलुयायी सरतनारथशाख का कारु ईसा की दूसरी मे चौथी शताब्दी तक मानते हैं । परन्तु यह सरवया अयुद्ध है । मरतनाट्यशास््र के कई प्रकरण पाणिनि से प्राचीन काशकृत्स्न व्याकरण और जआपिशल शिक्षा के अनुसार हैं । अतः यह पाणिनि से निश्चय हो पूर्ववर्ती अन्य है। इस पर विशेष विचार के लिए देखो इसारे “छन्दः्शास्र का इतिहास' अन्थ का भरत-प्रकरण ! यह अन्थ शोघ मुद्रित होगा । २. स्वय राजन्त इति स्वराः । मह्ामाप्य १।२।२९॥ ३. आपिशकू, पाणिनीय तथा चन्द्रिका सूत्र इसने अकाशित किए हैं । ४. पाणिनीय शिक्षा दो भार की उपलूच्घ होती है, सूतात्मक तथा इछोकार्मक 1 सूताव्मक शिक्षा हो पाणिनि-प्रोछ् है, इछोकात्मक पाणिनि-प्रोक्त नहीं है । इसके किए देखिए “साहित्य” (पटना) वर्ष ७ जक्क ४, पौष २०१३ सं हमारा लेख--'सूक पाणिनीय दिक्षा* । इस पर विदोष विचार हमने “दहिक्षा-शाख का रविद्ाखः> ( अप्रकाशिद ) अन्धस किया है ५ ऊघावन्ते दयोदच वद्धषो शुरः 1 पिट्‌ सूत्र २।१९ } चान्द्रटीका ( भ्र्या्ार सूत्र १३) स उद्धू उ्था श्रायिक पाठ । जसेन सुद्धित फिट्सूत- इति मे यद्धशो गुर.” पाठ है ।




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