धर्म निरपेक्षवाद और भारतीय प्रजातन्त्र | Dharmanirapekshavad Aur Bharatiy Prajatantra

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Dharmanirapekshavad Aur Bharatiy Prajatantra by एम॰ पी॰ दुबे - M. P. Dube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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\ धर्मनिरपेखना का पेतिद्ासिक सदर्भं / 3 नागरिको कै व्यक्तिगत निजी जीवन मे निषेघ करता है । बैडलाफ के मॉडल अर्थात्‌ मार्क्स के साम्यवादी परपराओ के धर्मनिरपेझवाद को साम्यवादी देशो में अपनाया गया है, जबकि होल्योक के मॉइल अर्थात्‌ पश्चिम के उदारवादी प्रजातात्रिक परपराओ के घर्मनिरपेक्षवाद को परिचमो देशो तथा भारत मे अनेक विभिन्नताओ के साथ अपनाया गया है। साम्यदादी धर्मनिरपेक्षवाद का दृष्टिकोण आत्यतिक है । इसके विपरीत पश्चिम के उदारवादी परपराओ मे धर्मनिस्येसवाद का अर्थ ईश्वर विरोधी अथदा नास्तिकतावादी नही है बल्कि इसे एक ऐसे सक्रिय माध्यम के रूप मे देखा जाता है जो कि मनुष्य को अपनी प्रकृति के पूर्ण दिकास के लिए उत्साहित करता है यह मनुष्य के व्यक्तित्व का भौतिक गौर शारीरिक के अतिरिक्त जीवन के अन्य पहलुओ के विकास का साधन है अर्थात्‌ धर्मनिरपेझदाद में वे सभी मानव विचार एवं क्रियाएं आ जाती हैं जिनका दिना दैवी अथवर अदृश्य शक्तियो क! सदार निये मानवे कल्याण प्राप्त करना लक्ष्य होता है 1 धर्मनिरषे राज्य में राज्य धर्म से पृथक्‌ तथा असदद्ध होता है । राज्य और धर्म-- दोनों का अपना अलग-अलग क्षेत्र होता है, व्यक्ति की नागरिकता धर्म पर आधारित नहीं होती है । इन उक्त जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए डी ० ई० स्मिथ ने अपने प्रशमनीय तथा अनुदोधक अध्ययन मे धर्मनिरपेक्ष राज्य की व्यवहार्य परिभाषा दी है । उनके अनुसार, “घर्मनिरपेक्ष राज्य एक ऐसा राज्य है जो व्यक्तिगत व सामूहिक रूप में धार्मिक स्वतत्रता की सुरक्षा करता है, व्यक्ति को किसी धार्मिक भेदभाव के बिना एक नागरिक के रूप में देखता है, सवैधानिक दृष्टि मे किसी घर्म दिशेष से असयुक्त रहता है । यह किसी धर्मके प्रसार मे सहायक या वाधक नहीं होता । सूदम परीक्षण मे यह देला जा सक्ता है कि धर्मनिरषेदा राज्य कौ धारणा मे तीन विभिन्न परतु अत सवधित सवघो के स्तर--राज्य, धर्म और व्यक्ति-निहित हैं । सबधो के तीन समूह हैं 1 धर्म और व्यक्ति (धर्म को स्वतन्त्रता) 2 राज्य और व्यक्ति (नागरिकता) 3 राज्य और धर्म ( राज्य और धर्मं का पृचक्करण) धर्मनिरपेस राज्य व्यक्ति को एक नागरिक के रूप में देवता है न कि विसी विशेष घार्मिक समूह के सदस्य के रूप मे । नागरिकता वी शर्तों को निर्धारित करते समय धर्म अप्रासगिक होता है। अधिकार और कर्तव्य व्यक्ति के धार्मिक विस्वासों से प्रभावित नहीं होते । स्मिय के अनुसार धर्म निरपेक्ष राज्य ही मूलभूत मान्यता यह होती है कि उसका धार्मिक भामलों से कोई लेना-देना नही होता है । इससे किसी भी प्रकार का विचलन युत्तियुक्त घर्मनिरपेझ् आधारो पर अवश्य उचित होना चाहिए 1 स्मिथ वी धर्मनिरपेसं राज्य बी अवधारणा पूर्णतया आदर्श कड़ी जा सकती है । जो सही अ्थों मे अभी तक किसी भी देश में प्राप्त नहीं की जा सही है । फिर भी इस परिभाषा को भी अपर्थाप्तता की आलोचना का शिकार होना पडा है। अगर हम तौन निदधातो, जो स्मिथ की धर्मनिरपेन्न 'राज्य की व्यवहार परिभाषा में समाविष्ट होते हैं, पर विचार करें-धर्म की स्वतत्रता (व्यक्तिगत तथा सामूहिक ) , सदधो मे समानता ( राज्य की तटम्थता ) -- तो हम पाते




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