अध्यात्म - वार्ता | Adhyatm - Vaarta

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Adhyatm - Vaarta by स्वामी पुरुषोत्तमानन्द जी - Swami Purushottamnand ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥. + 1 करते हँ अथवा वहु रूप राम, कृष्ण भादि किसी अवतार का हो सकता है । क्रिसी अवतार को पुजा के लिए इष्ट मानने में यह लाभ होता है कि उपासक मागवत या. रासायण में भगवान्‌ की लीलाओं का वर्णन पढ़ सकता है और इस प्रकार उस परमात्मा के प्रति बड़ी सुगमता से भक्ति का विकास कर सकता है । अध्यात्म-जीवन के अगोचर तत्वों को सम- झना बड़ा ही कष्ट-साध्य है । परन्तु जब वे ही सत्य कथाओं के रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं तब वे न केवल परमात्मा के प्रति भवित उत्पन्न करते हैं अपितु वे शिष्य को बड़ी आसानी से समझ में आ जाते हैं । इस दृष्टिकोण से सागवत्‌ में वर्णित कृष्ण लीलाएं अद्भूत हैं । नटखट कृष्ण गोपियों के दूघ और दही को गिरा देते हैं, जो उन गोपियों की सम्पत्ति है। क्या यह उन लोगों के लिए एक शिक्षा नहीं है जो धन और सब प्रकार की. वस्तुओं का संग्रह कर रहे हैं भगवान्‌ एक दिन उनकी सभी चीजों को बिछेर देंगे और वे उनको गरीयों में वाट देंगे ताकि भौतिक संसार की वस्तुओं के प्रति हमारी आशक्ति नष्ट हो जाय । यशोदा कृष्ण को बांघना चाहती है परन्तु उसे सफलता नहीं मिलती । परन्तु जब वह पूर्णतया थक जाती दहै तव वह्‌ अपना प्रयत्न छोड़ देती है मोर तब वें स्वयं अपने आपको बंध जाने के लिए प्रस्तुत कर देते हैं । हम उनको पाने का प्रयत्न बार-बार करते हैं परन्तु वे हमें छलते ही जाते हैं । तब हम आत्मसमपंण करते हैं और तत्र अहो ! वे अपते आपक्रो हमारे प्रति प्रकट करते हैं । चीर हरण लीला मी इसी प्रकार शिक्षा देती है । उन्हें पाने के




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