गाँधी - बावनी | Gandhi Bavani

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Gandhi Bavani by दुलेराय काराणी - Duleraya Karani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ गांघी-चावनी दांडी-कूच १ बादल के नाहिं, देश-भक्तन के दल, घन- गर्भेन न हक रग-द्यूरन सुनाभी है; सुनहरी सध्या के यह, खी सिंगार नाहिं, देश-सेविका की साडी, केरी सुहा है; अिन््-धनु नोर्हि, ये ञुडायो है निरी ध्वज, मोर-घुनि नाहि, भव॑देमातरम्‌ गा दै; भारत में भयो, ऋत॒पावस को रंग नाहिं, मोहन गांधीने कूच, दांडी पे छााओी है.---१५. दॉडी-कूच २ कै बहादूर चढे, डके की खगाय चोट, झंडे झूमझूम | फरहर ! फरकत है; देख देस शेखन की, रेखी खिस गथी सथ, सारी दयादनशाही का, सीना धरकत है; जा को नाहिं जोट भैसी, भ्टिसा की चोट हु से, जाडीमों के केते केठे, कोट करकत है; छोटी दांडी-कूच की छोटी-सी चिनगारी में से, गोरी पातसाइत की, होरी अगठत है.--१६




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