श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 30 | Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 30

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Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 30 by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[१३] भअ्रकार प्रिताफो से तापित प्राणिया को भ्पने कृपा करटांकषो की कोर से छत कृत्य करती रहे । कि. यह ससार शभ्राज है माँ ! मुझे क्रोध श्रा रहा है, यदि उस समय मैं होता, राम मुझे घनुप बाण दे देते, तो इन समस्त विदो का नाश कर देता । ये निदक कितने क्र होते हैं ? हाय । भूरी चाते कहते हए इन्दे लज्जा भौ नही लगतो, इनको जिह्वा भौ नहीं गिरती । झच्छा सत्य ही सही; किसी ने पाप किया, तो सुम्हारे बाप का क्या बिगड़ा । तुम श्रपनी छाती पर हाथ रख- कर देखो, तुमने कभी पाप नहीं किया ? तुमसे कोई भ्नुचित कार्य नहीं वना ? तुम सवा दूध के घुले ही हो, सुम्हारे मन मे कभी पाप नहीं ग्राया ? यदि ग्राया है, तो भले मनुष्यों | तुम उसे ससार के सामने बयो नहीं प्रकट करते । उस पहाड़ जेसे पाप वो तो कृपणुके धनके सदश छिपाते हो श्रौर दूसरों में दोप न रहने पर भी उनमे झनुमान से दोष लगाते हो । यह नही देखते थी हमे उनकी श्रलोचना करने का बंया श्रघिकार है । भ्रयोध्या भे बसने वाला घोबी श्रपनी मेट्रारू से कहता डै-' तू रानि में किसके घर रही * भ्रव मैं तुफे श्रपने यहाँ न 'रखूंगा, कया मुक्ते राम समझती है, राम तो खो लोभी है जो नौ महीना रावण के घर मे रही सीता को फिर से रख लिया । मैं ऐसा श्रवर्म न करूँगा ।” लीजिये, ये चौधरी जी राम से भी दो हाथ ऊपर बढ गये । यया कहे इस वुटिलि ससार को ऐसे लोगो की बातो पर भी ध्याप दिया जाता है, तो हम तो यहीं सममते हैं, ये महापुरुष दया कृपा के वशीभूत होकर सिर्री हो, जाते है। सनक जाते है, इन पर पागलपन सवार हो जाता है।- अयोध्या में एक भी ऐसा घोबो नहीं था प्राय सभी धोबी ऐसे हो गये थे जो सीताजी सहिंत श्रीराम को विहासन पर बैठा देखकर जलने लगे थे ।




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