श्री मज्जवाहिराचार्य के राजकोट व्याख्यान भाग - 2 | Shri Majjavahiracharya Ke Rajakot Vyakhyan Bhag - 2

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Shri Majjavahiracharya Ke Rajakot Vyakhyan Bhag - 2 by पूर्णचन्द दक न्यायतीर्थ - Purnachand Dak Nyaytiirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९) श्रात्म साक्ती से निणेय करो भण च> भ अज न 0.५० चैक, ध भा का कनक 0 हा करके क 9 च ५ न न म जक = भिः क च क~ २५. ०१ ११.०.११११.१११ १.१.११. ष सि 1 वजीर ने उत्तरं दियो-हजूरं ! यह क्या निचय करि यह जूता ओलिया .साहंवं काही हे । करिसी दुसरे दतान करा भी हो सकता है में तो आपको सलाम कर सकता हूं इसको सलाम नहीं करना चाहता । वादश्ताह ने वह सारी हकीकत. क सुनार जो जूते फे संस्वन्ध में हुई थी । किस तरद किसी ने ओछिया साहव का पेर देखा था आर किसी ने हाथ आदि | . चजीर ने कहा-से भी इंसं जूते को देखू तो सही कि .केसा है । वजीर ने तख्त पर से जूता उठा दिया ओर गोर से देखने लगा । देखकर कहने लगा-बादशाह सलामत गजब हो ...गया । यह जूता तो मेरे लड़के का है । आप जैसे बादशाह मेरे लड़के के जूते को सलामं करें यह अजब हेरानी की घात दहे) यह सुनकर जूते के जुलूस मं शरीक .. होकर शाने वाले भगनूनी लोग. कने लगे कि दजूर ! यद. काणपिर जियारत में खलल करता है । इसको राज्य से निकाल देना चाहिए । वजीर ने कंहा-हजुर } हाथ कगन को क्या आरसीं। मै अपने घर . से इसकी जोड़ की दूसरा जूता मेगवा देता हूं । तना कहकर घजीर ने अपने नोकर से दूसरा जूता. मंगवा लिया ओर सब से कहा कि देखे लो यहं इसी की जोड़ का - है न ? तब झंपं खाकर सब लोग. कहने लगे कि हजूर ! यह -' काफिर द्रंगाह दारीफ में श्रांया ही क्यों था । वादेशाह ने कहा




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