पुरुषार्थ दिग्दर्शन | Purusharth Digdarshan

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Purusharth Digdarshan by उत्तमनाथ जी -Uttamnath Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२५) ` कूटकर करते £, येसेदी पण्डित लोग धर्मो परीक्षा भी चार प्रकारसे करते हैं । पदले, शाखसे अर्यात्‌ अमुक शाख परस्परचिख्द्रादिदोषय्रस्त दहै कि नदीं इसका विचे- चन करके यदि दोपरदिंत दो तो मानना और न दो तो मददीं मानना चादिये । दूसरे, झीलसे अर्थात्‌ चद्मयचर्यं 'किसे कहते हैं? उसको पाटन करनेका क्या फल दहै? रिं देतुसे श्रह्मचर्यका अवढम्यन किया ज्ञाता है? इन बार्तोकी सूबमरूपसे गवेषणा करके अगर बराबर मालूम हो ज्ञाय तो ज्ञानना कि यद धर्म ठीक है। तीसरे तपोगुण देखना अर्थात्‌ तपश्चर्या का क्या देत है £ तप किसे कहते हैं ? उससे क्या कार्य होता है” इत्यादि का विचार स्थ्य करना और जिसमें भ्रतिक्ञा, हेतु, उदादरण, उपनय ओर निगमन श्न पाँचो अचयवसि युक्त तपोगुण सिद्ध हो उसमें धर्म सम- झना चादिये । उन्तमें परोक्षाका चौथा कारण दयागुण है। जिसमें प्राणिमाथ की दया है चद्दी धर्म दै. और 'जिसमें माणिमाधकी दया नहीं है उसे धर्मे नदीं कते पांश दयाकरनेवाडा दयावान्‌ नर्द फदा जा सकता किन्तु मोहयान. कदटाता है 1 ये मोद ४ प्रकारके द श्राखमोष, सम्बन्धमोद, आत्मीयमोह ओर ममत्वभावकाः भोद 1 जेते दिन्दूकालोमि गौ फो घड़ी अतिष्ठा दी गयी द्वै इससे दिन्टूमाच मौकी रक्षा करते द दसा कारण दाख्रमोह है 1 चैसेही सुसल्मानोंके चाखमें सूकर को नहीं मारनेकी आज्ञा है, अत पव सुसढमान सूकरकों हराम समझते हैं। यद्द भी दाख्रमोहसेही है। अब सम्बन्ध- -मोदकों लीजिये । सिदनी चो अपदे बच्चे पालन करती ककय क,




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