ग्वालियर राज्य के अभिलेख | Gvaliyar Rajya Ke Abhilekh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) अभिलेख प्राप्त हुए हैं, यह भी सूचित कर दिया गया है । दूसरे परिशिष्ट में उन स्थलों का उल्लेख है. जहाँ मूल स्थलों से हटे हुए अभिलेख रखे हुए हैं । तीधरे परिशिष्ट में वे सब भौगोलिक नाम दिये गये हैं, जो इन सूचियों में आये हैं । इस प्रकार ग्राम, नदी, नगर, पर्वत श्यादि के प्राचीन नाम इसमें श्र गये हैं । चौथे परिशिष्ट में प्रसिद्ध राजवंशों के अभिलेखों की संख्याएं दी गई हैं । पाँचवें परिशिष्ट मे राजा, दाता, दानग्रहीता, निमीणक्र, लेखक, कवि, उत्कीशेक श्चादि व्यक्तियों के नामों की सूची दी गयी हे । छठवें परिशिष्ट में एक मानचित्र है । इस सूची के पूव एक प्रस्तावना भी लगा दी है। इस प्रस्तावना के चार खण्ड हैं: प्रथम खण्ड में इन भिलेखों के विषय में व्यापक जा उकारी देने का प्रयास किया है । दूसरे खण्ड में प्राप्त अभिलेखों के झाधार पर ग्वालियर का प्रादेशिक राजनीतिक इतिहास संझिप रूप में दिया गया हैं । इस अंश को लिखने में में ने अन्य पुस्तकों के अतिरिक्त स्व० डॉ० काशीप्रसाद जायसवोल एवं श्री जयचन्द्जी विद्या- लंकार के ग्रंथ “अन्घकार युगीन भारत” तथा “भारतीय इतिहास की रूप-रेखा' से सहायता ली है । ग्वालियर पुरातत्व विभाग के 'अवकाश-प्राप्त डायरेक्टर श्री मा बि० गर्दे के बीस वर्ष के स्तुत्य प्रयास का भी उपयोग इस पुस्तक में है । यह इतिहास तोमरवंश पर लाकर समाप्त कर दिया गया है। राजपूत राज्यों के समाप्त होकर सुलतानों और मुगलों के राञ्य के स्थापन की कानी मेने अन्यत्र के लिए सुरक्षित रखी है । तीसरे खण्ड में उन भौगोलिक नामों का विवेचन दिया गया हूं; जो अभिलेखों में श्राये हैं । यह भाग मराठी 'विक्रम स्मृति-अंथ' में लेख के रूप में भी छप चुका हे । चौथे खण्ड में धार्मिक इतिहास का संक्षिप्त विवेचन है। यह सब प्रयास केवल सूचक है, 'झभी इसको अधिक विस्तार की आवश्यकता है । इस प्रकार के प्रादेशिक अध्ययन के महच पर श्रधिक लिखने की आवश्यकता नहीं । इससे न केवल एक प्रदेश के सास्कितिक गोरव का प्रदर्शन होगा वरन्‌ भारतीय इतिहास के निमोणु में भी सहायता पहुँचेगी । यह पुस्तक इस कम की मेरी चार पुस्तकों में से एक है। ग्वालियर की पुरातत्व सम्बंधी सामग्री के अध्ययन के फलस्वरूप मैंने चार पुस्तकें लिखने का संकल्प किया । “ग्वालियर राज्य के अभिलेख यह प्रकाशित हो रही है; पवालियर राञ्यकी मूतिंक्लाःका आधा अंश “ग्वालियर राज्य में प्राचीन मूर्तिकला' के नाम से निकल चुका है । बाघ-गुद्दा सम्बंधी पुस्तक के अंश लेख




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