मेरी जीवन - यात्रा | Meri Jivan Yatra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ मेरी जीवन-यात्रा | ५ वषं चारे बिना क्या हाल था? सा<। ५।य५। ५।९ वनस्पति केसी भुलसी हुई थी इन बातोका मुभ बिल्कृल स्मरण नहीं. ययपि उस वक्त मेँ चार वषंसे ऊपर हो रहा था, किन्तु अ्रकालके बाद (१८६८ ई०) वाली बरसातका अ्रारम्भ मुभे ग्रच्छी तरह याद हं । मं उसी समय कनेलासे पन्दहा लाया गया था । जहाँ कनेलाके बस्तीके ग्रासपास वृक्ष-वनस्पति शून्य विस्तृत ऊसर था, वहां पन्दहा चारो मरोर वृक्षौ श्रौर बाँसकी भाड़ियोंसे ढँका था । किन्तु उस दिन तो मालूम होता था, उस श्रसाधारण, हरियालीने भ्रपनी छायामें भ्रन्धकारको छिपा रखा है । श्रकालका प्रभाव हमारे नाना श्रौर पिता दोनोंके घरोंपर नहीं पड़ा । पिताके पास दस-बारह एकड़ खेत थे, ग्रौर नानासे भी उनकी अ्रवस्था श्रच्छी थी । दोनों ही घरोंमें श्रामदनीसे खच बढ़ा हुभ्रा नहीं था । बल्कि यदि मे गरत्ती नहीं करता, तो इसी अ्रकालके समय श्रनाजके मंहगे भावसे लाभ उठाकर पिताने पहिली पूँजी जमा की, जो बढ़ते-बढ़ते चार-पाँच हजार तक पहुँच गई । भे र अक्तरार भ ( १८९८ ई० ) होश संभालनेसे पहिले चाहे मकं साथ ग्रक्सर कनेला रहनेका मौक्रा मिलता रहा हो, किन्तु, वादमे तो नानाके याँ ही मेरा स्थायी वास रहा । ननिहालके मेरे जंम नाती शोख हो जाते हं, लेकिन मेरी शोखीकी कभी किसीको हिकायत नही हई । पन्दहाके मं भ्रच्छे लड़कोमे समभा जाता था । नानीका स्नेह तो सैर अद्वितीय था ही, नानाका प्यार भी कमन धा, किन्तु साथ ही नाना--पल्टनिहा सिपाही-- कड़े श्रनुशासनको पसन्द करते थे । सिवाय एक वार--सो भी बहुत कुछ दिख- लाऊ--कभी उन्होने एक थप्पड़ भी मुक नहीं मारा; किन्तु, नानाकी डपट मेरे लिए पचास लाटीके चोटसं कमकीन थी । नाना खेल-कूदके भी ख़िलाफ़ थे । दरख्तपर चढ़ना उन्हींके कारण जिन्दगी भर मुं नहीं श्राया । उनकी चलती तो मुकेतेरनाभी नहीं त्राता, किन्तु ननिहालकी पोखरीमं एकं बार डूबनेसे बचकर कनेलामें मेंने उसे सीख लिया । नानाने श्रपनी जानभर मेरे लिए जिन्दगीको जेलखाना भना दिया था ।




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