गांधीजी क्या चाहते थे ? | Gandhiji Kya Chahte Thai ?
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
306 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रचनात्मक कार्य ओर उसकी रक्षा १९
कारण देश में धन-तंत्रके रस चे पुष्ट तरह-तरह के गला पोरे उग आवे!
जल्कुंभी जिस प्रकार धीरे-धीरे नदी-ताल-पोखरों को छा लेती है, उसी
प्रकार इन जंगली पौधों ने भी बढ़कर श्राम्य जोवन के सदज स्रात का कठराध
कर दिया है । जिन सब त्रत्तियों का अवलंबन लेकर पदले लोग अपना पालन-
पोषण करते थे, आज उन कामों से दो मुट्ठी अन्न भी नहीं जुट पाता । झाड़-
झंखाड़ों की तरह जिन नयी त्रत्तियों ने पुरानी इत्तियों का स्थान ल्या हे,
उनके बदले में फिर से नयी-नयी त्रत्तियाँ झुरू करना पड़ेंगी । घतरे के समान
फूलों की वहार ओर शोभा मे मग्न रहने से काम नहीं चढेगा । जिस चेतौ
के द्वारा मनुष्य का जीवन फिर से स्वास्थ्य, सम्पत्ति और स्वाध्रानता से पुष्टि
लाभ कर सके, उसकी खोज करनौदोगी ओर सतत जाग्रत दार द्वारा नवर
जीवन को बचाकर रखना दागा ।
माड़-मंखाड़ों का परिचय
वीरभूम जिला धान का प्र दिदय है । पहले लोग इस प्रदेश में घान के
अलावा कपास, सरसों, इख और आवदयकतानुसार रेड़ो पदा करते अं।र सन
आदि घुन लेते थ । यहां के निवासियों की यही चेट्टा रहती थी कि नित्य
प्रयोजन की वस्तुओं के लिए गाँव छोड़कर कददीं दूर न जाना पड़े । गाँव में
लोह्ार, कुम्हार, बढ़ई, थोबी, नाई और माली वसते थे और उनमें से
अधिकांश लोगों को दर साल ग़दस्थ के घर से धान का एक निदिचित अंश
मिलता था । किमीको मजदूरी के बदले में जमं।न मिली हुई थी, जिस पर
वद्द अपनी खेती करता था । जो चोज एक गाँव में पेदा नहीं हो सकती थी,
अथवा जिसे खरीदने की दमेशा आवश्यकता भी नहीं होता, उसे यहाँ के निवासी
झीतकाल में घान की कटाई के वाद विभिन्न मेलों में जाकर खरीद लाते थे ।
किसी मेल में प्रधानतः गाय-वैठों की बिक्री होती थी, कद्दीं दल, घर के दरवाजे,
खिड़कियोँ; कद्दीं पाट या सन के कपड़े अथवा बरतन । कभी-कभी लोग काशी;
बून्दावन अथवा श्रीक्षेत्र जैसे खुदूर तीर्था मे जाकर वदाँ से बरतन, कपड़े आदि
खरीद लाते थे और पाढ़ी-दर-पीढ़ी उन्दें काम में लाते रहते ये ।
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