आलोचक रामचन्द्र शुक्ल | Aalochak Ramchandra Shukl
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
874 MB
कुल पष्ठ :
270
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आत्म-संस्मरण प
बस्ती थी। ऐसे लोगों के उदू' कानों में हम लोगों की बोली कुछ श्रनोखो लगती
थो । इसी से उन लोगों ने हम लोगों का नाम “निसंदेह लोग' रख छोड़ा थ।। मेरे
मुहल्ले में एक मु्लमान सबजज श्रा गए थे । एक दिन मेरे पिताजी खड़े-खड़े उनके
साथ कुछ बातचीत कर रहे थे । बीच में में उधर जा निकला । पिताजी ने मेरा
परिचय देते हुए कहा--'इन्हें हिन्दी का बढ़ा शौक हैं ।”” चट जवाब मिला--
““ापको बताने की जुरूरत नहों । में तो इनकी सूरत देखते हो इस बात से वाकिफ
हो गया।” मेरी सूरत में ऐसी क्या बात थौ यद इस समय नहीं कहा जा सकता ।
आज से चालीस वर्ष पहले की वात है ।
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