थामस जेफर्सन और अमरीकी प्रजातन्त्र | Thamas Jepharsan Aur Amariki Prajatantra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
199
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४
उच्तर शिक्षा की अमरीकी संस्थाओं में हारवडे के बाद उसी का स्थान था)
१८ वीं दताब्दि के वर्जीनिया में एक छोटे से समुदाय में उच्चतर शिक्षा पाना
कोई साघारण बात नहीं थी । १७२७ से ही कालेज के अन्तगतं चार पृथक्
स्कूल थे, १४५ वर्ष तक के बच्चों के लिए एक “ग्रामर स्कूल', एक दरशनशास्त्र
का स्कूल, एक स्नातकोत्तर अध्यात्मवादी स्कूल जिसका मुल उद्देश्य आंग्लिकन
धमेप्रचार के लिए लोगों को प्रशिक्षित करना था और एक रेड इंडियन स्कूल भी
था । ददनशास्त्र के स्कूल में बी. ए. की डिग्री के लिए चार वर्ष का कोसं
रखा गया था । किन्तु जेफसंन ने १५ वष के बजाय, जो कि वहाँ भर्ती होने की
सामान्य उम्र थी--१७ वषं की अवस्था में वहाँ प्रवेश किया ओौरदौही वषं
तक वहाँ रहे ।
कालेज मेंदौ वषं का समय जेफसंन ने किस प्रकार व्यतीत किया, इस
बारे मे जानकारी कालेज-जोवन के एक सहपाटी तथा स्वयं जेफपंन की अपनी
आत्मकथा से मिलती है, जिसमें उन्होंने उस प्रसिद्ध व्यक्ति के महत्वपूर्ण प्रभाव
का उल्लेख किया है, जिसने उनके अध्ययन का निर्देशन किया था :
“यह मेरा सौभाग्य था-ओौर कदाचित् इसीने मेरे जीवन का भाग्य-निर्णय
भी किया-कि स्काटलेण्ड के डा० विलियम स्माल गणित के तत्कालीन प्राध्यापक
थे। वे विज्ञान की अधिकांश उपयोगी शाखाओं के उद्भट विद्वान, पन्रव्यवहार
में प्रवीण, व्यवहारकुशल तथा व्यापक और उदार विचार के व्यक्ति थे । मेरा
अहोभाग्य था कि वे मेरे प्रति शीघ्र ही आकर्षित हो गये और उन्होंने स्कूल
के कामों से फुर्सत पाने के समय मुभे अपने सहवास में रखा । उनके साथ
वार्तालाप करके मे पहली बार विज्ञान की व्यापकता तथा सृष्टि की
क्रमबद्धता के बारे में जानकारी मिली । सौभाग्य से कालेज में मेरे पहुंचने के
बाद ही दशनवास्त्र के प्राध्यापक का स्थान रिक्त हुआ और उन्हें अस्थायी तौर
पर वहाँ नियुक्त किया । उन्होंने पहली बार कालेज में नीतिशास्त्र, अलंकार
दास्र ओर साहित्य पर नियमित व्याख्यान दिये 1
जिन लोगों को १७ वषे की वयमें ही एक उच्च कोटि के शिक्षक के प्रभाव में
आनेका सौभाग्य प्रात हुआ है, वे शायद ही इस अपूव॑ सम्मान को एक वृद्ध
पुरुष का भावनात्मक प्रवाह समभेगे ओर् जेफसंन भी भावुकतावादी नहीं थे ।
उनके शिष्यों की श्रद्धांजलियों के अतिरिक्त डा. स्माल के बारे में और कुछ भी
ज्ञात नहीं है। वर्जीनिया के रगमंच पर् उनका अल्पकालिक दर्शन हुआ ।
१७५८ में वे प्रोफेसर नियुक्त हुए और १७६४ मे उन्होने पदत्याग कर दिया ।
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